चीख रही थी अबला जर जर…

मानवता 

सीए विनय गर्ग ‘मोहित’, भरतपुर


वो मार रहा था चाकू पत्थर,
चीख रही थी अबला जर जर।
मानवता शर्मसार खड़ी थी,
बीच सड़क इक लाश पड़ी थी।।
चीखों की वहाँ लगी झड़ी थी, पर
किसको  किसकी वहां पड़ी थीl
बीच सड़क इक लाश पड़ी थी।। 1

न तो इनकी बेटी थी वो,
न ही रिश्तेदार थी कोई,
फिर कोई क्यूँ लफ़ड़े में पड़ता,
कोर्ट कचहरी चक्कर करता।
मानवता मुँह ढक के खड़ी थी,
बीच सड़क इक लाश पड़ी थी।। 2

क्या हो गया इस देश में यारो,
संवेदनाएँ कहाँ खड़ी हैं।
भावनाएँ कहाँ पड़ी हैं,
अन्तः करण में झाँक के देखो,
जज़्बातों को आंक के देखो।
भावना शून्यता मुँह बाएं खड़ी है,

बीच सड़क इक लाश पड़ी है,
बीच सड़क इक लाश पड़ी है।। 3

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