पाप पुण्य
डॉ. सत्यदेव आज़ाद, मथुरा
आदमी अब खूब रोता है
मन मसलता है
मांग भर कर मृत्यु की
सौभाग्य सांसों से
ज़िन्दगी में छल पिरोता है।
आदमी अब खूब रोता है
पुण्य कैसा?
मात्र किंचित भाव
पीव बनकर
वासना से हाथ धोता है।
आदमी अब खूब रोता है
आराधना का मूक मन्दिर
गल कर गली का कीट बनकर
जा सिसकता है
शांत शोणित सांस
मनुज को खोजता है।
आदमी अब खूब रोता है
सत्य की अर्थी उठी है
ललकारती है
पाप को भी
पुण्य को भी
स्नेह का सिंदूर क्वारा
सकपकाते हल्द हाथों पर
सरस के बीज बोता है।
आदमी अब खूब रोता है
(लेखक आकाशवाणी के सेवानिवृत वरिष्ठ उद्घोषक और नारी चेतना व बाल बोध मासिक पत्रिका ‘वामांगी’ के प्रधान सम्पादक हैं )
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