युगों से अपने बहुआयामी व्यक्तित्व के कारण श्रीकृष्ण लोकमानस को जितना प्रभावित करते रहे हैं, उतना किसी अन्य ने नहीं, यहां तक कि श्रीराम ने
Tag: Dr. Satyadev Azad
कैसे भुलाएं?
यथार्थ को छैनी से
स्वप्नों को काटा छाँटा
अंगड़ाता है बुढ़ापा यौवन की अर्थी पर…
झंझाओं का महानाद
कवलित काल
ऐसे न थमेगा
हो चुका है प्यार काफ़ी…
फेंक दो
अपनी पुरानी कल्पनाओं के कफ़न कवि!
मैं था हवा खोर…
सफ़ेद धुला
मलमल का कुर्ता पहने
मैं टहल रहा था।
मेरी सारी वांछित देह, लांछनों की…
मेरी सारी वांछित देह
लांछनों की
दहकती सलाखों से
दरपन मन टूक टूक हो गया…
कुहरे की छाँव घनी हो गई
पुरबइया नाग फनी हो गई
दरपन मन टूक टूक हो गया
आदमी अब खूब रोता है…
आदमी अब खूब रोता है
मन मसलता है
मांग भर कर मृत्यु की
पुस्तक समीक्षा: वाणी के जादूगर उद्घोषकों के लिए अद्भुत पुस्तक ‘वाक् कला’
कीर्ति, काव्य और ऐश्वर्य की श्रेष्ठता उसके सर्वहिताय एवं मांगलिक प्रयोजन में निहित है। रचनाकार का दृष्टिकोण सर्वभूतहिते होने पर ही उसकी सार्थकता होती है। हिन्दी साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान
संत शिरोमणि गुरु रविदास जिहोंने हिन्दू समाज को विघटन से बचाया
सिकन्दर लोदी के शासन में समूचे भारत की अस्पृश्यता अपनी चरम सीमा पर थी तथा उस समय दलित वर्ग के साथ पशुवत व्यवहार हो रहा था। ईश्वर भक्ति, वेदों का पठन-पाठन आदि पर मात्र