स्वामी विवेकानंद जयंती पर विशेष
विश्वानि देव अग्रवाल, बरेली
अट्ठारह सौ तिरसठ जनवरी 12 को
धरा पर हुआ विशिष्ट आनंद,
नरेंद्र नाथ जन्मे कलकत्ता,
बाद में बने विवेकानंद।
माता उनकी भुवनेश्वरी देवी
पिता हुए श्री विश्वनाथ दत्त,
गुरु बनाया रामकृष्ण को
और बन गए उनके भक्त।
पच्चीस वर्ष की मात्र आयु में
बने वो योगी सन्यासी,
उनतालीस की अल्प आयु में
देह उन्होंने थी त्यागी।
चेले सदानंद परमानंद
अभयानंद अशोकानंद,
शिष्या सिस्टर निवेदिता थीं
एक शिष्य थे विरजानन्द।
रचना रची अनेक उन्होंने
राज योग और ज्ञान योग,
संग में ‘मेरे गुरु’ भी लिखी
लिखी कर्म योग व भक्ति योग।
भारत का स्वभिमान जगाया
दूजों हित जीना सिखलाया,
भारत प्रगति को लक्ष्य बनाकर
संस्कृति ध्वज जग में फहराया।
युवकों के नेता आकर्षक
छैल – छबीले सादा भेष,
युवा दिवस की तरह मनाता
इस दिन को है भारत देश।
ऊंचे कुल में जन्मे फिर भी
छुआ नहीं बिल्कुल अभिमान,
भारत मां को लाल मिला ये
जो सपूत था और महान।
मात्र नहीं विद्वान धर्म के
रहे सदा तेज – तर्रार,
हिन्दू धर्म सुधारक थे वो
किए अनेकों अदभुत कार्य।
कुशाग्र बुद्धि अदम्य साहस
अनुशासन संयम धैर्य भरा,
ओजस्वी वक्ता तर्क शील
उनकी वाणी से देश जगा।
झंझावत बनकर आये वो
अग्निशलाका बनकर छाये,
बहुमुखी प्रतिभा के उस धनी को
सिर बार-बार खुद झुक जाये।
(लेखक स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया के सेवानिवृत वरिष्ठ अधिकारी हैं)
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