नई दिल्ली
Judgment: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि किसी कर्मचारी के रिटायर होने के बाद अथवा उसके सेवा विस्तार की अवधि पूरी होने के बाद यदि उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की जाती है तो वह गलत है। सुप्रीम कोर्ट ने एक सरकारी बैंक (Bank) के अधिकारी द्वारा दायर की गई याचिका की सुनवाई करते हुए हाल ही में यह फैसला सुनाया। और बैंक अधिकारी के विरुद्ध उसकी विस्तारित सेवा अवधि पूरी होने के बाद शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही को अमान्य करार दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कर्मचारी के रिटायर होने या सेवा विस्तार अवधि के बाद अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती। जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया।
मामले के अनुसार प्रतिवादी-कर्मचारी 1973 में क्लर्क-टाइपिस्ट के रूप में SBI में शामिल हुआ और प्रबंधकीय पदों तक पहुंचा। 30 वर्ष की सेवा पूरी करने के बाद 26.12.2003 को उसकी रिटायरमेंट होनी थी। SBI ने परिचालन कारणों से उसकी सेवा 01.10.2010 तक बढ़ा दी। बैंक प्रबंधन की ओर से प्रतिवादी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही 18.08.2009 को शुरू नहीं की गई, जब कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, लेकिन 18.03.2011 को ही शुरू की गई, जब अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने प्रतिवादी को चार्ज मेमो जारी किया। अपीलकर्ता-बैंक ने तर्क दिया कि चूंकि अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने का नोटिस विस्तारित अवधि की समाप्ति से पहले शुरू किया गया, इसलिए प्रतिवादी-कर्मचारी अनुशासनात्मक कार्यवाही से छूट का दावा नहीं कर सकता।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार प्रतिवादी-बैंक कर्मचारी ने बैंक प्रबंधन के इस तर्क को चुनौती दी और कहा कि यह कार्रवाई उसकी रिटायरमेंट के बाद शुरू की गई। उन्होंने कहा कि SBI अधिकारी सेवा नियमावली का नियम 19 (3) रिटायरमेंट से पहले शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही को जारी रखने की अनुमति देता है, लेकिन यह रिटायरमेंट के बाद कार्यवाही शुरू करने की अनुमति नहीं देता। सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ता की दलील खारिज करते हुए लिखित निर्णय में भारत संघ बनाम के.वी. जानकीरामन (1991) के मामले का हवाला देते हुए कहा कि अनुशासनात्मक कार्यवाही आरोप पत्र दाखिल करने की तिथि से शुरू मानी जाती है, न कि पहले की सूचना से। चूंकि आरोप पत्र विस्तारित अवधि पूरी होने की तिथि के बाद दायर किया गया। लिहाजा अनुशासनात्मक कार्यवाही कानून के तहत गैर-कानूनी है।
अदालत ने कहा कि अनुशासनात्मक कार्यवाही को वैध बनाने के लिए SBI को विस्तारित अवधि की समाप्ति से पहले यानी सेवा अवधि के भीतर अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करनी चाहिए थी। अदालत ने कहा कि रिटायरमेंट के बाद या विस्तारित अवधि की समाप्ति के बाद शुरू की गई कार्यवाही को जारी नहीं रखा जा सकता। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि किसी कर्मचारी के विरुद्ध उसकी रिटायरमेंट से पहले कार्यवाही शुरू की जाती है तो उसे सेवा में बने रहने वाला माना जाता है, जिससे कार्यवाही को रिटायरमेंट के बाद आगे बढ़ाया जा सकता है और समाप्त किया जा सकता है।
न्यायालय ने कहा,“ऐसी स्थिति होने के कारण हमें अपील में कोई योग्यता नहीं दिखती। तदनुसार, अपील खारिज की जाती है। अपीलकर्ताओं को प्रतिवादी के सभी सेवा बकाया को शीघ्रता से तथा किसी भी स्थिति में आज से छह सप्ताह के भीतर जारी करने का निर्देश दिया जाता है।”
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