वो मार रहा था चाकू पत्थर,
चीख रही थी अबला जर जर l
मानवता शर्मसार खड़ी थी,
Tag: CA. Vinay Garg Mohit
चीख रही थी अबला जर जर…
अपने तो अपने होते हैं…
अपने तो अपने होते हैं,
किसी की आंख का नूर
चलो, आज कुछ अच्छा करते हैं…
चलो,आज कुछ अच्छा करते हैं। कष्टों से रोती दुनिया में…
निर्मल बचपन…
मत रोको इन नादानों को बड़े प्रेम से बहने दो, ये तो निर्मल जल गंगा है…