महात्मा गांधी की चिंतनधारा

महात्मा गांधी पुण्य तिथि 

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डॉ. शिखा अग्रवाल  


महात्मा गांधी एक ऐसे समाज विज्ञानी थे जो हर व्यक्ति को समाज का केंद्र बनाना चाहते थे। वे ऐसे आधुनिक और बुद्धि संगत व्यक्ति थे जिनके सारे विचार और कार्य उनके समय की परिस्थिति से भले ही जन्मे थे लेकिन उन्हें काल और समय की सीमा  में नहीं बांधा जा सकता। उनकी पुस्तक ‘हिंद स्वराज’ छोटी सी है पर उसमें  आज की लगभग सभी समस्याओं का समाधान  निहित है।

मोहन दास करमचंद गांधी उन दुर्लभ लोगों में थे जो लगातार अपने विचारों और विचार पद्धति को व्यवहार और समय की कसौटी पर कसते थे और उन्हें बदलने की क्षमता रखते थे। इसीलिए एक कर्मशील चिंतक कहे गए।

गांधी किसी भी समस्या के कारणों की जड़ तक पहुंच कर उसे दूर करने में विश्वास करते थे जिससे समस्या का स्थाई समाधान हो। ‘हिंद स्वराज’ इसी बात को प्रकट करती है कि समस्या चाहे राजनीति से जुड़ी हो या समाज से, प्रकृति से या अर्थव्यवस्था से; सभी समस्याओं के हल के लिए आत्म संयम और आत्म नियमन तथा नैतिकता और नैतिक आचरण आवश्यक है। कोई भी कार्य अगर लोभ, लालच या संग्रहण की प्रवृत्ति से किया जाएगा तो समस्याएं उत्पन्न होंगी। वर्तमान देशीय और वैश्विक समस्याओं ने इस बात को भलीभांति सिद्ध कर दिया है। पर्यावरण असंतुलन, बढ़ती आर्थिक असमानता, बढ़ता शहरीकरण और अपराध; अंधाधुंध लालच और संग्रह करने की प्रवृत्ति का परिणाम है। आज ‘प्रकृति की ओर लौटने’ का जो आह्वान पर्यावरणविद कर रहे हैं वह गांधी की चिंतन धारा को ही रेखांकित कर रहे हैं। सादा जीवन शैली अपनाने की कोशिश फिर शुरू हो गई है।

महात्मा गांधी ऐसे जननायक और कुशल प्रबंधक थे जिन्होंने शक्ति का अर्थ शांति और अहिंसा के रूप में समझाया। शस्त्र उठाने के स्थान पर आत्मबल से आगे बढ़ने का अस्त्र दिया। इसका 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन से बढ़कर कोई उदाहरण नहीं हो सकता जिसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की दिशा ही बदल दी। आम जनता शांति से परिवर्तन का हिस्सा बनी और महिलाओं ने बड़ी संख्या में पहली बार घर से निकलकर स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

आज आवश्यकता इस बात की है कि गांधी को एक संत, उद्धारक या एक महात्मा के रूप में  पहचानने के साथ – साथ एक ऐसे आधुनिक जीवन पद्धति का विचार देने वाले जननायक के रूप में भी जाना जाए जिसने आज के विश्व में श्रम और समानता, मानव का सम्मान और स्वतंत्रता को अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि बिना श्रम किए धन इकट्ठा करना गलत है, शोषण का कारण है; नैतिक नियमों के बिना व्यवसाय करना असमानता का जन्मदाता है; ज्ञान के साथ चारित्रिक अच्छाई भी जरूरी है और विज्ञान का उद्देश्य मानवता को लाभ पहुंचाना है न कि उसके लिए खतरा बनना और बिना नैतिक सिद्धांतों के राजनीति दल-दल के समान है। महात्मा गांधी की सोच और विचार आज भी भारत और पूरे विश्व के लिए एक रोशनी के समान हैं।

(लेखक राजकीय महाविद्यालय,सुजानगढ़ में सह आचार्य हैं)





 

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