गांधी मार्ग से ही सुलझ सकती हैं समस्याएं

महात्मा गांधी पुण्य तिथि 

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डॉ. अलका अग्रवाल 


गांधी बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। हम सब उन्हें राष्ट्रीय आंदोलन के नेता के रूप में जानते हैं। उन्होंने असहयोग, सविनय अवज्ञा और भारत छोड़ो आंदोलन में संपूर्ण देश की जनता में निर्भयता का संचार किया और जन सहभागिता सुनिश्चित की। जनता की नब्ज पर उनकी जैसी पकड़ किसी की नहीं थी ।

गांधी बीसवीं शताब्दी के महान राजनीतिक चिंतक थे। इसके साथ ही वे अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, शिक्षा शास्त्री, समाज सेवक, हिंदी भाषा के प्रबल समर्थक और एक सच्चे इंसान थे, जिन की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था। वे साध्य के साथ साधनों की पवित्रता में विश्वास करते थे और जिन्होंने सत्य और अहिंसा के आधार पर विरोध की एक नई अहिंसक तकनीक संपूर्ण विश्व को प्रदान की। उनके विचारों के आधार पर संपूर्ण विश्व में शांति आंदोलन चल रहे हैं। मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेलसन मंडेला, आंग सान सू की जैसे नेताओं ने अपने- अपने देश में गांधी से प्रेरणा लेकर अन्याय का विरोध किया। यही कारण है कि राष्ट्रपिता गांधी का जन्मदिन अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

अगर हम गांधी को समझना चाहते हैं तो उन्हें समग्रता में समझना होगा। आज जब हमारे देश में बेरोजगारी चरम पर है, गांधी का स्वावलंबन और भी अधिक प्रासंगिक हो गया है। गांधीवादी अर्थशास्त्र, सच्चा अर्थशास्त्र है, जो नैतिक और मानवीय तो है ही, सामाजिक न्याय की हिमायत भी करता है। संसाधनों का न्यायपूर्ण वितरण और आवश्यकता से अधिक को स्वेच्छा से त्याग देना, उनके अर्थशास्त्र के आधार हैं। ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ और ट्रस्टीशिप इसके दो अन्य प्रमुख स्तम्भ हैं। उनका यह कथन ‘सुस्थिर विकास’ की अवधारणा के लिए आदर्श है कि यह धरती प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकता की पूर्ति कर सकती है, परन्तु किसी एक के भी लालच की नहीं।

वे जानते थे कि गांवों के विकास के बिना भारत का विकास नहीं हो सकता। इसलिए उन्होंने ‘गांवों की ओर लौट चलो’ का नारा दिया और विकेंद्रीकरण पर आधारित, आत्मनिर्भर, ग्राम अर्थव्यवस्था का समर्थन किया। वे स्वदेशी के प्रबल समर्थक थे और इसके लिए उन्होंने चरखा और खादी का अर्थ शास्त्र प्रदान किया। उनका ‘रोटी के लिए श्रम’ का सिद्धांत समानता स्थापित करने का साधन था। गांधी जी की पुण्यतिथि पर हमें यह विचार करना होगा कि हम उनके बताए गए मार्ग पर चलकर भारत के समक्ष खड़ी समस्याओं को किस हद तक दूर कर सकते हैं।

(लेखक सेवानिवृत्त कॉलेज प्राचार्य हैं)





 

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