स्वामी विवेकानंद का भारत और युवा वर्ग

जयंती   |   राष्ट्रीय युवा दिवस 

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 डॉ. अलका अग्रवाल 


स्वामी विवेकानंद ने भारत के परंपरागत जीवन मूल्यों और आदर्शों को तो आत्मसात किया ही था , साथ ही पाश्चात्य सभ्यता की ऊर्जा को भी समझ लिया था। आधुनिक परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुरूप उन्होंने हिंदू धर्म की पुनः व्याख्या की तथा उसे राष्ट्रवाद से जोड़ दिया । उनके राष्ट्रवाद का धार्मिक आधार होने के कारण ही, उन्हें भारत में धार्मिक और आध्यात्मिक राष्ट्रवाद का जनक कहा जाता है। जिस प्रकार संगीत में एक प्रमुख स्वर होता है, वैसे ही हर राष्ट्र के जीवन में एक प्रधान तत्व होता है अन्य सभी तत्व उसी में केंद्रित होते हैं, ऐसा स्वामी विवेकानंद मानते थे। भारतीय इतिहास और दर्शन में धर्म वह प्रमुख तत्व है,जो राजनीतिक जीवन में इतना घुला- मिला है कि उसे पृथक नहीं किया जा सकता।

स्वामी विवेकानंद धर्म को शक्ति प्रदान करने वाला तत्व मानते हैं। उनके अनुसार,” मेरे धर्म का आधार शक्ति है । जो धर्म ह्रदय में शक्ति का संचार नहीं करता, वह मेरी दृष्टि में धर्म नहीं है।” बंकिम चंद्र के समान ही स्वामी विवेकानंद भी भारत को एक आराध्य देवी मानते थे और उसकी दैदीप्यमान प्रतिमा की कल्पना और स्मरण से उनकी आत्मा जगमगा उठती थी।वे भारत माता की उन्नति को देशवासियों की उन्नति के रूप में देखते थे। प्राचीन धर्म में कहा गया है कि जो ईश्वर में विश्वास नहीं करता ,वह नास्तिक है परंतु नया धर्म कहता है कि जो स्वयं में विश्वास नहीं करता, वह नास्तिक है। हमें स्वयं में विश्वास करके ही अपना उद्धार करना होगा। यही कारण था कि उन्होंने भारतीयों का और विशेष रूप से युवा वर्ग का आह्वान करते हुए, उन्हें निर्भीक और साहसी बनने का संदेश दिया। 

उनके अनुसार, शिक्षा केवल जानकारी का पर्याय नहीं है, जो मस्तिष्क में ठूंस दी जाती है। यदि शिक्षा का अर्थ केवल जानकारी ही होता तो पुस्तकालय विश्व के सबसे बड़े गुरु होते।  विदेशी भाषा में दूसरों के विचारों को रटकर अपने मस्तिष्क में भरकर डिग्री प्राप्त कर लेना ही शिक्षा नहीं है।वे मन के संयम की शिक्षा को सबसे जरूरी मानते हैं ,क्योंकि तब अपने मन को इच्छा अनुसार एकाग्र किया जा सकता है। शिक्षा का लक्ष्य व्यक्ति को इस योग्य बनाना है कि वह अपने हाथ पैर,नाक,कान,आंख का उचित उपयोग करने के लिए अपनी बुद्धि का सही प्रयोग कर सके । 

भारतीयों की दुर्दशा का कारण स्वामी विवेकानंद के अनुसार, उनकी शक्तिहीनता है। अतः वे ‘लोहे की मांसपेशियां और फौलाद के स्नायु ‘ वाले युवक बनाना चाहते थे। वे कहते थे ,”तुम गीता पढ़ने के बजाए फुटबॉल खेल कर स्वर्ग के अधिक निकट पहुंच सकते हो”। इस प्रकार ऐसे समय में जबकि भारत में राजनीतिक उदासीनता और निराशा के बादलों ने भारतीयों को अकर्मण्य बना दिया था ,उन्होंने भारत के सुषुप्त अभिमान को पुनः जागृत किया। वे एक ऐसे राष्ट्रभक्त सन्यासी के रूप में सामने आए, जिन्होंने युवा वर्ग को’ उत्तिष्ठत, जाग्रत , प्राप्य वरान्निबोधत ‘ का मंत्र दिया।( उठो ,जागो और वह प्राप्त करो जिसे तुम प्राप्त करने के योग्य हो) युवा वर्ग को भयमुक्त करके , शक्तिशाली , निडर ,साहसी बनाकर देश के गौरव को आगे बढ़ाने के लिए स्वामी विवेकानंद हमेशा याद किए जाएंगे।यही कारण है कि उनके जन्मदिवस को हम’ राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में मनाते हैं।


         (लेखक कॉलेज की सेवानिवृत्त प्राचार्य हैं)





 

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