दो सरकारी बैंकों के निजीकरण के लिए बड़ी तैयारी, सरकार करेगी बैंकिंग नियमों में बदलाव, बैंक यूनयन ने भी किया प्रदर्शन करने का ऐलान

नई दिल्ली 

केंद्र सरकार दो सरकारी बैंकों का निजीकरण करने की बड़ी तैयारी कर रहे है। इसी के चलते सोमवार से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में बैंकिंग कानून संशोधन विधेयक लाया जा सकता है। इससे सरकार को बैंकिंग नियमों में बदलाव करने का अधिकार मिल जाएगा। वहीं जी दो बैंकों का निजीकरण करने के तैयारी चल रही है, उसका भी रास्ता साफ़ हो जाएगा। इस बीच बैंक यूनियनों ने सरकार की ऐसी कोशिशों का विरोध करते हुए  29 नवंबर से संसद सत्र के दौरान दिल्ली में बड़ा धरना प्रदर्शन करने का ऐलान किया है।

आपको बता दें कि केंद्र सरकार सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और बैंक ऑफ इंडिया के प्राइवेटाइजेशन पर विचार कर रही है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस साल फरवरी में 2021-22 का बजट पेश करते हुए विनिवेश कार्यक्रम के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों (PSB) के निजीकरण की घोषणा की थी। इसके बाद से ही सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों के निजीकरण का रास्ता आसान करने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है। चालू वित्त वर्ष में विनिवेश से 1.75 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा गया है।

संशोधन विधेयक होगा पेश
सूत्रों ने कहा कि सत्र के दौरान पेश किए जाने वाले बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 के जरिये पीएसबी में न्यूनतम सरकारी हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से घटाकर 26 प्रतिशत करने की संभावना है। हालांकि  सरकार का कहना है कि इस विधेयक को पेश करने के समय के बारे में अंतिम निर्णय मंत्रिमंडल ही करेगा।

निजीकरण से पहले ला सकते हैं वीआरएस
विनिवेश पर गठित सचिवों के मुख्य समूह की तरफ से जिन बैंकों का नाम सुझाया गया है, उनमें सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और बैंक ऑफ इंडिया के नाम शामिल हैं, जिनके निजीकरण पर विचार किया जा सकता है। सूत्रों का कहना है कि निजीकरण से पहले ये बैंक अपने कर्मचारियों के लिए आकर्षक स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (VRS) ला सकते हैं।

बैंक यूनियन बड़े आंदोलन के मूड में
ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कन्फेडरेशन (एआईबीओसी) ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की निजीकरण योजना के खिलाफ संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान दिल्ली में विरोध-प्रदर्शन की घोषणा की है। एआईबीओसी के महासचिव सौम्य दत्ता ने इस विरोध-प्रदर्शन की घोषणा करते हुए कहा था कि सरकार 29 नवंबर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में बैंकों के निजीकरण का विधेयक पेश कर सकती है।

यूनाइटेड फोरम आफ बैंक यूनियंस ने कहा है किबैंकों  के निजीकरण के विरोध में चरण बद्ध तरीका से आंदोलन किया जाएगा। पहले चरण में 29 नवंबर से संसद सत्र के दौरान दिल्ली में धरना प्रदर्शन होगा। यूनियन का आरोप है कि केंद्र सरकार देश के सभी सरकारी उपक्रमों को बेचने पर आमदा है। देश के बंदरगाह, एयरपोर्ट व रेलवे का हिस्सा भी बेच चुके हैं। अब सरकार की बैंकों पर बुरी नजर है। आगामी संसद सत्र में सरकार बैंकों के सरकारी शेयरों को बेचने के लिए बिल प्रस्तुत पेश करेगी। इस बिल के विरोध में फेडरेशन से जुड़े नौ यूनियन धरना प्रदर्शन करेंगे। सरकारी बैंकों को देश के बड़े औद्योगिक घरानें को नहीं बेचने दिया जाएगा।

कोरोना के चलते आंदोलन किया था स्‍थगित
इससे पहले इस मामले को लेकर फोरम की अगुवाई में 15 और 16 मार्च मार्च 2021 में संगठनाें ने विरोध किया था। दो दिनी बैंकों में हड़ताल रही। जुलाई व अगस्त 2021 के दौरान आयोजित संसद के पिछले सत्र के दौरान भी आंदोलन का निर्णय लिया गया था, मगर कोरोना प्राटोकाल के चलते अधिकारियों व कर्मचारियों की यूनियनों ने आंदोलन को स्थिगित कर दिया।

ऐसे होगा  ग्राहकों का शोषण
बैंक यूनियनों के अनुसारबैंकों के लंबित वकाया लोन वसूल करने के लिए कोई कारगर कानून जानबूझकर नहीं बनाया गया है। जानबूझकर लोन चुकता न करने वालों के विरुद्ध कोई कठोर कार्रवाई नहीं की जाती है, जबकि बैंक संगठन इसकी बार बार मांग करते रहे है। सरकार बढ़ते हुए एनपीए का हवाला देकर बैंकों को जानबूझकर घाटे में दिखाना चाहती है। फिर सरकार के इशारे पर वित्तमंत्रालय तर्क पेश करता है कि घाटे के चलते सरकारी बैंकों का एक मात्र उपाय निजीकरण है। यह सरकार की एक सोची समझी साजिश है।

यूनियनों ने दावा किया है कि 80 बैंकों का बकाया लोन बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों के पास हैं । यही औद्योगिक घराने जिन्होंने बैंकों के लोन चुकता नहीं किए हैं, बैंकों के शेयरों को खरीद लेंगें। फिर बैंकों की जन कल्याणकारी नीतियों को समाप्त कर कर दिया जाएगा। ग्राहकों पर विभिन्न प्रकार के शुल्क लगाकर उनसे सेवा शुल्क वसूला जाएगा।