पुकार…

हे आशुतोष मुझे अपना लो
अपने जैसा मुझे बना लो

ज़िन्दगी कुछ तो दे मशवरा…

ऐ ज़िन्दगी क्यूं कर रही है परेशान,
राह ए हयात कुछ तो कर आसान

पावस ॠतु

पावस ऋतु का पावन माह
मनभावन यह सावन माह
रिमझिम रिमझिम बरसाए मेह
चंहु ओर बिखराए नेह

मां

ईश्वर की सर्वोच्च अनुपम कृति है माँ
इस धरा पर स्वयं ईश्वर का प्रतिरूप है माँ
ब्रह्मा द्वारा रचित सृष्टि की रचना का सार है माँ

बहुरंगी नारी जीवन

नारी जीवन में हर्षोल्लास का पर्याय है रंग
यही रंग देते हैं जीवन को नित नए आयाम

 रंगोत्सव

होलिका में दहन कर अपना अहंकार
मानवता पर करें हम यह उपकार

गौरी खेले होली

आई फागुनी बयार
लेकर रंगों का त्यौहार

है गुज़ारिश

है गुज़ारिश
बंद करो अब नारी की
नर से तुलना करना

खोलो द्वार…

सोच संकुचित इस जगत की, कैसे करें उम्मीद समता की

अनमोल बेटियां…

कैसे कोई कर सकता है बेटियों का दान?