ऐ ज़िन्दगी क्यूं कर रही है परेशान, राह ए हयात कुछ तो कर आसान, किस राह चलूं नहीं हो रहा ये फैसला, न जाने कंहा गुम हो रहा मेरा ये हौंसला, ऐ ज़िन्दगी कुछ तो दे मशवरा।
किस बात पे मेरी है तू इतनी ख़फा, किस गुनाह की दे रही इतनी सज़ा, किया अपने हिस्से का हक़ सदा अदा, क्या यही है मेरी सबसे बड़ी खता, ऐ ज़िन्दगी जिस बात में तेरी रज़ा वो तो बता।
हमनवा ही लेने लगे हैं अब इम्तहान, अब तो सिखा दे अपने-पराये की पहचान, कुछ तो अपनों की फिक्र तू ही कर, है गुज़ारिश कि तू न ले इम्तहान इस कदर, ऐ ज़िन्दगी अब कुछ तो रहम कर।
(लेखिका राजकीय महाविद्यालय, नाथद्वारा, राजसमन्द में प्राणीशास्त्र की सह आचार्य हैं)