पुकार…

विनती 

डॉ. विनीता राठौड़


हे आशुतोष मुझे अपना लो
अपने जैसा मुझे बना लो 
हलाहल पीना मुझे भी सिखा दो
मस्त मलंग हो जीना सिखा दो

हे देवों के देव शिव शंकर 
बस जाओ मेरे मन के अंदर 
सुन लो मेरी यह दीन पुकार 
हर लो मेरे मन का अंधकार

स्वहित की चिन्ता से हो कर रिक्त
करती हूँ तुम से मैं यह विनती नित 
विषम परिस्थितियां हो चाहे संख्यातीत
भूल वश भी न हो मुझ से किसी का अहित