संबल
डॉ. विनीता राठौड़
नारी जीवन में हर्षोल्लास का पर्याय है रंग
यही रंग देते हैं जीवन को नित नए आयाम
प्रेरक रंगों से नारी रचती अपने सपनों का संसार
भर कर अपनों के जीवन में रंग
उनके सपनों को देती अभिनव आकार
पी कर भी स्वयं के दुःख के अश्रु
संतान को देती खुशियाँ अपार
नहीं टूटती, नहीं बिखरती
देकर संबल, संभालती घर-परिवार
रंगीन व रंगहीन, दोनों जीवन है जीती
फिर भी अपनों के जीवन में
मुस्कुराहटों के रंग है भरती
बहुरंगी हैं नारी जीवन के विविध आयाम
सुख को जीती, दुःख को सहती
धकेल आंसुओं को पीछे की ओर
श्वेत रंग भी वो अपनाती
बचपन का रंग था सुनहरी
यौवन का रंग हुआ सतरंगी
बुढ़ापे में यदि होता एकरंगी
उसको भी वो करती स्वीकार
प्रेम-प्यार की प्रतिमूर्ति
पूरी शिद्दत से है जीती
और नई पीढ़ी को दे जाती
नीतिगत संस्कारों की सौगात।
(लेखिका राजकीय महाविद्यालय, नाथद्वारा, राजसमन्द में प्राणीशास्त्र की सह आचार्य हैं)
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