आई फागुनी बयार लेकर रंगों का त्यौहार हर जीवन में भरा उल्लास राग द्वेष छोड़ सब करते हास-परिहास
रंग बिरंगी रंगों की होली आयाम देती जीवन को बहुरंगी चंचल चपल गौरी भी निकली आज खेलने होली
बाहर जाकर उसने देखी मस्तानों की टोली ले हाथों में रंग, गुलाल और गुब्बारों संग पानी भरी बड़ी पिचकारी मुट्ठी भर-भर गुलाल उड़ा सब खेल रहे थे होली
साजन के आने की आहट सुन हुई गुलाबी गौरी प्रेम-प्रीत के रंगों में भीग बहुत इठलाई गौरी प्रीत का रंग चढ़ा ऐसा कि इतराई अब गौरी सखियों ने जब छेड़ा तो शर्म से लाल हो गयी गौरी
(लेखिका राजकीय महाविद्यालय, नाथद्वारा, राजसमन्द में प्राणीशास्त्र की सह आचार्य हैं)