जीवट
डॉ. शिखा अग्रवाल
कभी फूल सा हल्का दिल भी,
पत्थर सा भारी होता है,
मनचाहे और अनचाहे में,
भेद यही गहरा होता है।
हर वक्त नहीं मिलता मनचाहा,
सोचा कहां सभी होता है,
फिर भी चलते रहना होता,
समय कहां, किसका रुकता है।
वृक्ष की सूखी डालों पर भी,
पुष्प ना पंछी का कलरव है,
इक बसंत का संदेशा ही,
झोली फूलों से भरता है।
नदियां भी तो प्यासी होती,
बारिश की हैं बाट निरखती,
वर्षा की जलधारा से ही,
कल-कल बह सागर से मिलती।
चातक इकटक नभ को देखे,
पानी बिन मन से थकता है,
बरखा की पहली बूंदों का,
इंतजार लंबा होता है।
जीवन भी कुछ ऐसा ही है,
सुख की आशा से जीवट है,
तूफानों से लड़ कर के ही,
नौका को साहिल मिलता है।
(लेखिका राजकीय महाविद्यालय, सुजानगढ़ (चूरू) में सह आचार्य हैं)
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