सद्भाव
डॉ. विनीता राठौड़
ये दुनिया नहीं है विश्राम स्थल
अभीष्ट कर्मों का ये कर्म स्थल
अद्वितीय इसका हर एक कण
इनके सदुपयोग का लें हम प्रण
महिमा जग की अपरम्पार
ईश्वर इसके मूर्तिकार
किसी के लिए यंहा हर चीज़ बेकार
तो कोई बेकार चीज़ों का शिल्पकार
कोई पथ विहीन
नाहक भड़काते बवाल
तो कोई खामोशी से तापते रहते अलाव
मानव जीवन की कुछ तो कद्र करें
नाहक यूं न इसको व्यर्थ करें
बनें प्रेरणा कुछ पहल करें
आरोप प्रत्यारोप बन्द करें
संकल्प से सिद्धि करें
नित मन की शुद्धि करें
लोकैषणा का करके त्याग
सद्कर्मों के निमित्त बनकर
परे करें “ममकार” व “अहंकार “
जला”हम”की अलख, पोषित करें सद्भाव।
(लेखिका राजकीय महाविद्यालय, नाथद्वारा, राजसमन्द की प्राणीशास्त्र की सेवानिवृत्त सह आचार्य हैं)
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