बसंत
डॉ. शिखा अग्रवाल
कल तक सूने खड़े वृक्ष की,
नव पल्लव ने झोली भर दी।
सुंदर सेमल के फूलों ने
ज्यों नव वधू की मांग है भर दी।
दिनकर ने अपनी रश्मि से,
सर्द हवा की राह मोड़ दी,
फूलों से वन उपवन भर गए
रंगों से ये वसुधा भर दी।
सृष्टि की अदभुत सृजना ने,
गेंदे, सरसों के फूलों की,
जैसे स्वर्णिम आभा लेकर
धरती मां की चुनर रंग दी।
भौरों के गुंजन से गुंजित,
बागों में अमराई फूली,
मन के झंकृत तार हुए अब,
मधुर राग में कोयल कूहकी।
पूरी वसुधा श्रृंगारित हो,
खुशियों का पगफेरा लायी,
महक उठी है सारी बगिया
बासन्ती बयार जो आयी।
(लेखिका राजकीय महाविद्यालय, सुजानगढ़ (चूरू) में सह आचार्य हैं)
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