आसमान को निहारना है तो अभी निहार लीजिए, हो सकता है कुछ सालों में आपको यह दिखना ही बंद हो जाए | जानिए इसकी वजह

बर्लिन 

यदि आपको आसमान को निहारना है तो अभी निहार लीजिए। टिमटिमाते तारों की झलक अपनी आंखों में ठीक प्रकार से बसा लीजिए। हो सकता है आने वाले समय में आसमान आपको नजर ही नहीं आए। और झिलमिलाते तारे दिखना बंद हो जाएं। जी हां; यह सच है। वैज्ञानिकों ने अपनी एक स्टडी में यह खुलासा किया है और कहा है कि आने वाले कुछ समय में हमको आसमान दिखना बंद हो जाएगा। वैज्ञानिकों ने इसकी वजह भी बताई है। आइए आज ‘नई हवा’ के इस अंक में जानते हैं वैज्ञानिकों की इस स्टडी के बारे में।

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दरअसल वैज्ञानिकों ने अपनी स्टडी में यह दावा किया है कि कुछ साल बाद हमको रात में आसमान दिखना बंद हो जाएगा। और ऐसा केवल एक देश में नहीं बल्कि पूरी दुनिया में होगा। इसकी वजह है तेजी से फैल रहा है लाइट पॉल्यूशन। यानी वो रोशनी जिससे हमारे घर, दफ्तर, सड़कें रोशन हो रही हैं। वैज्ञानिकों ने कहा है कि मानव निर्मित रोशनी की मात्रा और निरंतरता इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि रात में आसमान धुंधला होता जा रहा है। यहां तक कि सैटेलाइट्स के सिग्नल तक प्रभावित हो रहे हैं।

यदि मानव निर्मित रोशनी की मात्रा इसी तरह बढ़ती रही तो रात का आसमान कुछ सालों बाद हम सभी को दिखना बंद हो जाएगा इस स्टडी के अनुसार साल 2011 से 2022 के बीच रात के आसमान की ब्राइटनेस में 7 से 10 फीसदी की कमी आई है यानी जमीन को रोशन कर रही मानव निर्मित रोशनी आसमान को धुंधला कर रही है। इससे  रात का आसमान धीमे-धीमे अपनी खूबसूरती खोता जा रहा है

शोधकर्ताओं का कहना प्रकाश प्रदूषण (Light Pollution) के कारण पूरी दुनिया को रोशन करने के चक्कर में हम अपने-अपने आसमान को खो देंगे क्योंकि धरटी पर लगातार बढ़ते लाइट पॉल्यूशन की वजह से हमारीआंखों और वायुमंडल के बीच रोशनी का परावर्तन बहुत ज्यादा हो रहा है इसलिए अब हमको आसमान धुंधला नजर आने लगा है तारे नहीं दिखते आसमान में तारों के दिखने की मात्रा कम होती जा रही है

वैज्ञानिकों ने यह नतीजा उत्तरी अमेरिका, यूरोप, एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में की गई अपनी स्टडी के बाद निकाला है दुनिया भर के 19 हजार लोकेशन से 29 हजार लोगों से पूछा गया कि आपको रात का आसमान साफ दिखता है क्या पिछले एक दशक से अब तक कितना फर्क आया है तो दुनिया भर के सिटिजन साइंटिस्ट्स ने इसका जवाब भेजा जिसके बाद लाइट पॉल्यूशन की यह रिपोर्ट बनाई गई जिसमें बताया गया है कि पिछले एक दशक में धरती पर प्रकाश प्रदूषण बहुत बढ़ गया है इससे रात के आसमान का स्पष्ट दिखना 7 से 10 फीसदी कम हो गया है

जहां प्रदूषण कम है, वहां पर दिखते हैं ज्यादा तारे
अभी की स्थिति ये है कि अगर हम कम प्रदूषण वाले स्थान पर जाते हैं तो वहां आसमान में ढेर सारे तारे दिखते हैं  लेकिन किसी शहर में जाते ही ये कम हो जाते हैं  दरअसल वो कम नहीं होते; वायु और प्रकाश प्रदूषण की वजह से कम दिखने लगते हैं इंसानों द्वारा बनाई गई रोशनी से धरती पर चारों तरफ लाइट रिफ्लेक्शन इतना ज्यादा हो रहा है कि उसका असर हमारी आंखों पर पद रहा  यानी आंखों से आसमान के तारे धुंधले नजर आने लगे हैं

 इंसानों और जानवरों के लिए भी खतरनाक
जीएफजेड जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जियोसाइंसेस के फिजिसिस्ट क्रिस्टोफर कीबा ने कहा कि यह स्टडी दो मामलों की वजह से महत्वपूर्ण है पहली ये कि पहली बार वैश्विक स्तर पर रात के आसमान की ब्राइटनेस की स्टडी की गई है दूसरी बात ये कि पूरी दुनिया में रात की रोशनी को कम करने के लिए बनाए गए नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं विकास के नाम पर जिस तरह से इंसानों द्वारा निर्मित रोशनी बढ़ रही है, वो प्राकृतिक नजारों के लिए खतरनाक साबित होता जा रहा है

हर साल दो फीसदी कम हो रही विजिबिलिटी
कीबा कहते हैं कि पिछले एक दशक में बढ़ती हुई आर्टिफिशियल लाइट की वजह से पड़ रहे पर्यावरणीय असर पर काफी स्टडी हो रही हैपूरी दुनिया में इसके लिए नियम बनाए जा रहे हैंवायुमंडल में प्रकाश की मात्रा को लेकर चर्चा की जा रही है, ताकि हम अपने आसमान को देख सकें लेकिन जितनी तेजी से आर्टिफिशियल लाइट बढ़ रही है, वह विकास नहीं प्रदूषण है साल 2017 में सैटेलाइट्स की मदद से की गई एक स्टडी के मुताबिक इंसानों द्वारा बनाई गई रोशनी हर साल उस इलाके का ब्राइटनेस 2 फीसदी की दर से बढ़ा रही है

आधुनिक LED लाइट्स से ज्यादा दिक्कत, सैटेलाइट्स के सिग्नल हो रहे हैं प्रभावित
स्टडी के अनुसार आधुनिक LED लाइट्स की वजह से यह समस्या और तेजी से बढ़ रही है। बस कुछ साल और लगेंगे। उसके बाद आपको रात के आसमान की खूबसूरती देखने को नहीं मिलेगी। सबसे बड़ी दिक्कत होती है सैटेलाइट्स को। क्योंकि उन्हें इतनी ज्यादा रोशनी की वजह से धरती पर नजर रखना मुश्किल हो जाता है। लाइट के रिफ्लेक्शन की वजह से उनके सिग्नल और कैमरे प्रभावित होते हैं। इससे डेटा में अंतर आता है।

जानवरों के जीवनचक्र पर भी असर
वैज्ञानिकों के अनुसार लाइट पॉल्यूशन का असर सिर्फ आसमान और अंधेरे पर ही नहीं डालता इसका असर इंसानों और जानवरों पर भी होता है इनकी वजह से जुगनुओं की प्रजाति खत्म होती जा रही है जानवरों के संचार का तरीका बदल रहा है साथ ही उनके रात का जीवनचक्र खराब होता है अब वैज्ञानिकों का कहना है कि लाइट पॉल्यूशन कम करने का सिर्फ यही तरीका है कि रोशनी देने वाले यंत्रों की दिशा, मात्रा और प्रकार को सुधारा जाए

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