कब से लगेंगे होलाष्टक? होली से 8 दिन पहले शुभ कार्यों पर क्यों लग जाती है रोक? जानिए वजह

होली 

महाशिवरात्रि के बाद अब देश में होली की तैयारी जोरशोर से चल रही है साल की शुरुआत होते ही पहला बड़ा त्योहार होली ही पड़ती है। इस साल यानी  2022 में होली का त्योहार 18 मार्च को मनाया जाएगा। होलीसे 8 दिन पहले होलाष्टक शुरू हो जाते हैं, जो कि होलिका दहन तक रहते हैं।  ऐसे मान्यता है कि होलाष्टक के दौरान कोई भी मांगलिक नहीं किए जाते। इसलिए होलाष्टक प्रारंभ होने के साथ ही शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है।

इस आठ दिन भले ही शुभ कार्य नहीं किए जाते, लेकिन देवी-देवता की अराधना के लिए ये दिन बहुत ही श्रेष्ठ माने जाते हैं। ऐसा मानते हैं कि होली से 8 दिन पहले तक सभी ग्रहों को स्वभाव उग्र होता है। ग्रहों की स्थिति को शुभ नहीं माना जाता है। ज्योतिषातार्यों के अनुसार, होलाष्टक की अवधि में किए गए कार्यों का फल प्राप्त नहीं होता है। होलाष्टक के दौरान सोलह संस्कार सहित सभी शुभ कार्यों को रोक दिया जाता है इस दिनों किसी गृह प्रवेश या किसी अन्य भवन में प्रवेश करने की भी मनाही होती है इतना ही नहीं, नई शादी हुई लड़कियों को ससुराल की पहली होली देखने की भी मनाही होती है

होलाष्टक फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ होते हैं और फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है। इस बार होलाष्टक 10 मार्च से लगेंगे। फाल्गुन मास की अष्टमी तिथि 10 मार्च को तड़के 02 बजकर 56 मिनट पर लग जाएगी। होलिका दहन 17 मार्च को होगा। इस दिन से ही होलाष्टक का अंत हो जाएगा।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति होलाष्टक के दौरान मांगलिक कार्य करता है तो उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं व्यक्ति के जीवन में कलह और अकाल मृत्यु का भय रहता है। होलाष्टक की अवधि को शुभ नहीं माना जाता है।

ज्योतिषातार्यों के अनुसार, ऐसा भी माना जाता है कि फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान शिव की तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। कामदेव क्योंकि प्रेम के देवता माने जाते थे, जिससे तीनों लोक में शोक छा गया। उनकी पत्नी रति ने तब भगवान शिव से क्षमा मांगी, जिसके बाद शिवजी ने कामदेव को पुर्नजीवित करने का आश्वासन दिया था।

होलाष्टक को लेकर एक कथा और भी काफी प्रचलित है। कहा जाता है कि यही वह समय था जब हिरण्यकश्यप ने बेटे प्रहलाद को श्रीहरि भगवान विष्णु की भक्ति से दूर करने के लिए कड़ी यातनाएं दी थी। इसके बाद आठवें दिन बहन होलिका की गोदी में प्रहलाद को बिठाकर जला दिया था, लेकिन इसके बावजूद प्रहलाद का बाल बांका भी नहीं हुआ। जबकि होलिका जल कर राख हो गई थी। इसलिए इन आठ दिनों को अशुभ माना जाता है, इस दौरान सभी शुभ कार्यों की मनाही होती है। लेकिन जन्म या मृत्यु के बाद किए जाने वाले कार्य कर सकते हैं।

फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होता है होलिका दहन
होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन होता है यानी 17 मार्च को होलिका दहन होगा  होलिका दहन का शुभ मुहूर्त रात 9 बजकर 20 मिनट से देर रात 10 बजकर 31 मिनट तक रहेगा होलिका दहन के लिए करीब 1 घंटा 10 मिनट का समय मिलेगा और इसके अगले दिन 18 मार्च, शुक्रवार के दिन होली मनाई जाएगी वैसे होलाष्टक के दिन से होली की तैयारी शुरू हो जाती हैं मान्यता के अनुसार होली का पावन पर्व भक्त प्रहलाद की भक्ति और भगवान से उसकी प्राणरक्षा की प्रसन्नता में मनाया जाता है

ऐसे होता है होलिका दहन
होलिका दहन वाली जगह पर कुछ दिनों पहले एक सूखा पेड़ रख दिया जाता है होलिका दहन के दिन उस पर लकड़ियां, घास, पुआल और गोबर के उपले रख उसमें आग लगाते हैं  होलिका दहन के शुभ मुहूर्त में परिवार के किसी वरिष्ठ सदस्य से अग्नि प्रज्जवलित करते हैं  होलिका दहन को कई जगह छोटी होली भी कहते हैं  इसके अगले दिन एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाकर होली का त्योहार मनाया जाता है

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