विनती
डॉ. विनीता राठौड़
हे आशुतोष मुझे अपना लो
अपने जैसा मुझे बना लो
हलाहल पीना मुझे भी सिखा दो
मस्त मलंग हो जीना सिखा दो
हे देवों के देव शिव शंकर
बस जाओ मेरे मन के अंदर
सुन लो मेरी यह दीन पुकार
हर लो मेरे मन का अंधकार
स्वहित की चिन्ता से हो कर रिक्त
करती हूँ तुम से मैं यह विनती नित
विषम परिस्थितियां हो चाहे संख्यातीत
भूल वश भी न हो मुझ से किसी का अहित
गंगाजल से पावन कर दो
कृपादृष्टि मुझ पर कर दो
अपने श्री चरणों में बैठा लो
हे आशुतोष मुझे अपना लो।
(लेखिका राजकीय महाविद्यालय, नाथद्वारा, राजसमन्द में प्राणीशास्त्र की सह आचार्य हैं)
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