ये दुनिया नहीं है विश्राम स्थल
अभीष्ट कर्मों का ये कर्म स्थल
अद्वितीय इसका हर एक कण
इनके सदुपयोग का लें हम प्रण
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पोषित करें सद्भाव…
मैं अक्षर तुम मात्रा…
मैं अक्षर हूं एक तुम्हारा, तुम मेरी मात्रा हो।
मैं कदमों सा एक बटोही, तुम जैसे यात्रा हो।।
प्रभु-सहचर्य
चौरासी लाख योनियों में से एक
अति दुर्लभ है मानव योनि एक
है इस में इच्छा और कर्म का संपूर्ण समावेश