पोषित करें सद्भाव…

ये दुनिया नहीं है विश्राम स्थल
अभीष्ट कर्मों का ये कर्म स्थल
अद्वितीय इसका हर एक कण
इनके सदुपयोग का लें हम प्रण

बसंती बयार…

कल तक सूने खड़े वृक्ष की,
नव पल्लव ने झोली भर दी।

ओस की बिंदिया सजाकर…

जब अघाने छेड़ते हैं, बात मेरे गांव की।
हृदय के गहराव में इक, धूल के ठहराव की।

दरपन मन टूक टूक हो गया…

कुहरे की छाँव घनी हो गई
पुरबइया नाग फनी हो गई
दरपन मन टूक टूक हो गया

मैं अक्षर तुम मात्रा…

मैं अक्षर हूं एक तुम्हारा, तुम मेरी मात्रा हो।
मैं कदमों सा एक बटोही, तुम जैसे यात्रा हो।।

आदमी अब खूब रोता है…

आदमी अब खूब रोता है
मन मसलता है
मांग भर कर मृत्यु की

वो योगी सन्यासी…

अट्ठारह सौ तिरसठ जनवारी 12 को
धरा पर हुआ विशिष्ट आनंद

प्रभु-सहचर्य

चौरासी लाख योनियों में से एक
अति दुर्लभ है मानव योनि एक
है इस में इच्छा और कर्म का संपूर्ण समावेश

दीवारों के बीच चुन गए…

गुरु गोविंद सिंह के पुत्रों ने
दिया आज अपना बलिदान

नीड़ का बुनकर…

बया; बुनकर नीड़ का,
मार्गदर्शक युगों का,
प्रेरणा पा बया से; फिर,