पुकार…

हे आशुतोष मुझे अपना लो
अपने जैसा मुझे बना लो

आज की लक्ष्मीबाई…

प्रातः काल जो धधक उठी थी,
क्रोध भरी चिंगारी थी।
मत पूछो वो कौन थी यारो

पी चुके हैं हम विष का प्याला

बस बहुत हुआ अब और नहीं,
तुझमें मेरा अब ठौर नहीं,
बहुत अलग है दुनिया मेरी,
इस दुनिया में तेरा गौर नहीं।

आओ भारत नया बनाएं

नई लीक पर
नई सीख पर
नए सृजन की
राह सजाएं।

सीख…

ज़िन्दगी, तू मुझे हँसना सिखा, मुश्किलों से बचना नहीं

तबाही का मंजर…

हर जगह चीखे हैं…

जब कोई अपना जाता है…

जब कोई अपना जाता है…

हे! सृष्टि के परमेश्वर, अब लेते क्यों अवतार नहीं?

दम तोड़ती निर्बल सांसें…

तो बुरा समय क्यों ठहरेगा…

तो बुरा समय क्यों ठहरेगा…

रिश्ता नाम समर्पण का…

रिश्ता नाम समर्पण का…