कविता
डॉ. अलका अग्रवाल
तेरा परचम फिर फहरेगा
जब अच्छा समय ना रहा सदा,
तो बुरा समय क्यों ठहरेगा।
यह भी जाएगा धीरज धर,
तेरा परचम फिर फहरेगा ।
यह जीवन है, इसमें सब कुछ,
अनुकूल भी है, प्रतिकूल भी है,
है परिवर्तन ही शाश्वत सच,
तेरा परचम फिर फहरेगा।
दुख अगर कभी ना आएं तो,
सुख का महत्व क्या जानोगे।
यह घड़ी परीक्षा की है सुन,
तेरा परचम फिर फहरेगा।
जिन विपदाओं से घिरा हुआ ,
आमूल नष्ट हो जाएंगी।
सुख का सूरज चमकेगा तब ,
तेरा परचम फिर फहरेगा।
(लेखक सेवानिवृत कालेज प्राचार्य हैं)
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