पी चुके हैं हम विष का प्याला

कविता 

एकता श्रीवास्तव ‘यूनिटी’ इंदौर 


बस बहुत हुआ अब और नहीं,
तुझमें मेरा अब ठौर नहीं,
बहुत अलग है दुनिया मेरी,
इस दुनिया में तेरा गौर नहीं।

सुनले तू भी ज़ोर से,
देख ले चारों ओर से,
ये वक़्त नहीं रुकने वाला,
पी चुके हैं हम विष का प्याला,

जो भर देंगे हुंकार अभी,
मच जाएगी चीख पुकार यहीं,
सृजन की शक्ति रखते हैं,
हम शिव की भक्ति करते हैं।

मतवाले हैं मस्ताने हैं,
हम अपनी ज़िद को ठाने हैं,
अब नहीं हम थकने वाले,
कभी नहीं अब रुकने वाले।

अभी नहीं तो कभी नहीं,
ये पल बीते हैं सदी नहीं,
कुछ खोकर पाना सीखो तुम,
अहम को भुलाना सीखो तुम।

चलते जाओ बस चलते ही जाओ,
जीवनपथ पर अपने कदम बढ़ाओ,
मुड़कर पीछे मत देखो तुम,
आशाओं के अंकुर हो तुम,
मातृभूमि का कर्ज चुकाओ।

कर्मपथ पर बस बढ़ते जाओ,
जिसको आना है आ जाये,
जिसको जाना है चला जाये,
फर्क नहीं अब पड़ने वाला,
पी चुके हैं अब हम विष का प्याला।

हमसे अब जो टकराएगा,
सच में बस मुँह की खायेगा,
हार कहां हम मानेंगे,
बस जीत की धुन ही ठानेंगे।

गिर गिर उठना सीख लिया,
मर-2 कर जीना सीख लिया,
है हिम्मत तुझमे तो आ जा तू,
मेरी दुर्बलता पर ना जा तू।

अफ़सोस करेगा मुझको खोकर,
संभलेगा तू फिर खाकर ठोकर,
अभी नहीं तो कभी नहीं,
ये पल बीते हैं सदी नहीं।

क्या आपने ये खबरें भी पढ़ीं?