डॉ. अलका अग्रवाल
जब कोई अपना जाता है,
तब मन बेहद घबराता है।
दुख दिल में नहीं समाता है,
आंसू बन कर बह जाता है।
वह हमें अकेला छोड़ गया,
यह खालीपन है, मोड़ नया।
हाँ, उसने जीवन खूब जिया,
कर्तव्य स्वयं का पूर्ण किया।
अब क्या होगा, कैसा होगा,
क्या, कुछ पहले जैसा होगा।
अब मन में घोर निराशा है,
छाया हर ओर कुहासा है।
इस लोक में शेष नहीं है वह,
परिजन के दिल में बसता है।
हम सब उसके अनुगामी हों,
है मार्ग यही, मन कहता है।
(लेखक सेवानिवृत कालेज प्राचार्य हैं)
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