रिश्ता नाम समर्पण का, तो श्रद्धा नाम है अर्पण का। साथ ये चलते जीवन भर, तो भाव है बनता तर्पण का ll कोई लाख दिखाए रिश्तों को, नीयत तो पता चल जाती है। चाहे मुँह पर मीठे बोल रखो, सीरत तो पता चल जाती है।। मैं कितना भी धीरज धर लूँ, मन को निर्मल नीरज कर लूँ। ये बात जो घात यूँ देती हैं, कैसे मन में धीरज धर लूँ।।=2