कविता
निखिल गर्ग
ज़िन्दगी,
तू मुझे हँसना सिखा,
मुश्किलों से बचना नहीं,
उनसे लड़ना सिखा।
कल्पना के परिंदों को
आशाओं के आसमां में
उड़ना सिखा,
जिज्ञासा के समंदर से
ज्ञान का मोती निकालना सिखा।
ख्वाइशों को
इरादों में बदलना सिखा,
मंज़िलों को पाने का जुनून,
मुझे रखना सिखा।
ऊंचाइयों पर
अपनों को साथ लेकर चलना सिखा,
और ऊँची उड़ानों में,
होश मुझे संभालना सिखा।
सिखा ये सब ताकि,
लिख सकूँ
तेरे सुनहरे पन्नो में,
वो सब बातें,
जो मेरे सीखने से
तू और भी हसीन होती चली गई।
( एपी. इंडस्ट्रीज, E-16, इंडस्ट्रियल एरिया, सीकर। लेखक IIT, Dhanbad में B.Tech. में अध्ययनरत हैं)
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