भारत का ये है इकलौता जज जिसे फांसी के फंदे पर लटकाया गया, वजह थी खौफनाक

नई हवा ब्यूरो 

जी हां, यह बात सच है। जज को अपराधियों को सजा सुनते हुए आपने खूब सुना होगा। लेकिन किसी जज को फांसी की सजा मिली हो ये नहीं सुना होगा। आज ‘नई हवा’ के इस अंक में ऐसे ही एक जज की कहानी आपको बताने जा रहे हैं जिसके बारे में जानकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। आज से करीब 46 साल पहले यानी साल 1976 में भारत में एक जज को फांसी पर लटका दिया गया था और इसकी वजह बेहद ही खौफनाक है।

इस जज का नाम है उपेंद्र नाथ राजखोवा। 46 साल पहले  1976 में उनको को फांसी पर लटकाया गया थी। जज उपेंद्र नाथ राजखोवा की तैनाती असम के ढुबरी जिले में जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पद पर थे। उन्हें जो सरकारी आवास मिला था उसके आसपास अन्य सरकारी अधिकारियों के भी आवास थे। साल 1970 में  जब उपेंद्र सेवानिवृत्त होने वाले थे और फरवरी 1970 में वो सेवानिवृत्त भी हो गए थे। लेकिन उन्होंने सरकारी बंगला खाली नहीं किया था। इसी दौरान उनकी पत्नी और 3 बेटियां अचानक गायब हो गईं थी। जब इस बारे में उपेंद्र से पूछा जाता तो वो बात को टाल देते या फिर कुछ भी बहाना बना देते थे कि वो कहीं गए हैं।

सरकारी बंगला किया खाली
इस रहस्य से पर्दा तब उठा जब अप्रेल ,1970 में उपेंद्र ने सरकारी बंगला खाली कर दिया और अचानक कहीं चले गए, लेकिन वो गए कहां है इस बारे में किसी को कुछ पता नहीं था। वहीं उपेंद्र के साले पुलिस में थे और कहीं से यह जानकारी मिली कि जज उपेंद्र नाथ राजखोवा कई दिनों से सिलीगुड़ी के एक होटल में रुके हुए हैं। इस पर वे यहां पत्नी के भाई और अन्य पुलिसकर्मियों के साथ पहुंचे और अपनी बहन और भांजियों के बारे में पूछा, लेकिन उपेंद्र ने कई बहाने बनाए और आत्महत्या करने की भी कोशिश की। वहीं बाद में उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया।

बाद में उपेंद्र ने कबूल किया कि उसने ही अपनी पत्नी और बच्चों की हत्या करके शवों को सरकारी बंगले में जमीन के अंदर गाड़ दिया। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया और 1 साल तक केस चला। निचली अदालत ने उपेंद्र को फांसी की सजा सुनाई। इसके बाद  हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और यहां तक कि राष्ट्रपति तक को अपनी दया याचिका दी। लेकिन सबने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा।

इस दिन दे दी गई फांसी
इस मामले ने पूरे असम को हिलाकर रख दिया था। इस सनसनीखेज हत्या के मामले की सुनवाई के लिए विशेष न्यायाधीश को नियुक्त किया गया थाआखिरकार राजखोवा को इस अपराध के लिए दोषी ठहराया गया और उन्हें मई, 1973 में मौत की सजा सुनाई गईगुवाहाटी उच्च न्यायालय ने एक साल बाद उनकी मौत की सजा की पुष्टि की। भारत के राष्ट्रपति द्वारा उनकी दया याचिका को खारिज करने के बाद पूर्व जज उपेंद्र नाथ राजखोवा को उनकी पत्नी और तीन बेटियों की हत्या के जुर्म में  अंततः 14 फरवरी , 1976 को जोरहाट जेल में फांसी दे दी गई ।

इसमें सबसे बड़ी बात है कि राजखोवा ने अपनी ही पत्नी और बेटियों की हत्या क्यों की थी, इसके बारे में उन्होंने कभी किसी को नहीं बताया। ये अभी तक एक राज ही बना हुआ है। जिस बंगले में पत्नी और बेटियों की लाश उपेंद्र ने गाड़ी थी, उसे बाद में भूत बंगला कहा जाना लगा। वहीं दूसरे जज भी बंगले को छोड़कर चले गए थे। बाद में बंगले को तोड़ा गया और वहां नयाकोर्ट भवन बनाने का फैसला किया गया। दूसरी तरफ कहा जाता है कि उपेंद्र दुनिया के इकलौते ऐसे जज हैं, जिन्हें फांसी पर लटकाया गया। आज तक किसी जज को फांसी पर नहीं लटकाया गया है।

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