रक्षाबंधन विशेष
डॉ. अंजीव अंजुम
दीदी ने बांधी है मेरे,
राखी प्यारी प्यारी।
सचमुच मेरी प्यारी दीदी,
है लाखों में न्यारी।।
पहले रोली, अक्षत रखकर,
थाली खूब सजाई।
फूल, सितारे वाली राखी के,
संग रखी मिठाई।
बंधी कलाई पर जब राखी,
सजी हो ज्यों फुलवारी।
दीदी ने बांधी है मेरे,
राखी प्यारी प्यारी।।
राखी बांधी फिर दीदी ने,
माथे तिलक लगाया।
चॉकलेट का पूरा डिब्बा,
मेरे हाथ थमाया।
दिन ढलते डिब्बा था खाली,
खाई चॉकलेट सारी।
दीदी ने बांधी है मेरे,
राखी प्यारी प्यारी।।
मम्मी पापा ने तब डांटा,
भैया ने फटकारा।
लेकिन प्यारी दीदी ने तब,
आ मुझको पुचकारा।
इसीलिए घर आंगन में,
बस दीदी है मनुहारी।
दीदी ने बांधी है मेरे,
राखी प्यारी प्यारी।
(लेखक प्रधानाध्यापक एवं राजस्थान ब्रजभाषा अकादमी जयपुर की पत्रिका ब्रजशतदल के सहसंपादक हैं)
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