रक्षाबंधन विशेष
डॉ. शिखा अग्रवाल, सेवानिवृत्त सहआचार्य (कॉलेज शिक्षा), सीकर
“मैडम, रक्षाबंधन क्या होता है? मेरी कक्षा के लड़के कह रहे थे कि कल बहिनें उन्हें राखी बांधेगी। मुझे कौन राखी बांधेगा?” फुलवारी बाल आश्रम के सबसे छोटे बच्चे विकास ने दीप्ति से पूछा। पिछले साल अपने तीन साल के बेटे और पति को सड़क दुर्घटना में खोने के बाद से वो ऑफिस से लौट कर इस अनाथालय में बच्चों को पढ़ाने और उनके साथ खेलने के लिए कुछ समय देती थी।
दीपावली, पितृपक्ष और खुद के बच्चों के जन्मदिन पर तो कुछ लोग यहां खाना खिलाकर वाह- वाही लूटते हैं पर रक्षाबंधन जैसे त्योहार पर किसी को इनकी याद नहीं आती। वह विकास को प्यार से थपकी दे कर सीधे बाजार गई और ढेर सारी सुंदर राखियों के साथ मिठाई और बच्चों के लिए गिफ्ट खरीद लाई।
अगले दिन सुबह थाली में रोली चावल के साथ सभी सामान रखकर दीप्ति “फुलवारी” पहुंच गई। सबसे पहले विकास के टीका लगाकर उसने राखी बांधी और उसे गिफ्ट दिया तो वह खुशी से उछल पड़ा। दीप्ति ने बच्चों से कहा, “आज से मैं तुम्हारी बड़ी दीदी हूं। यह रक्षा सूत्र आजीवन हमें भाई-बहन के स्नेह बंधन में बांधे रखेगा।” उसने मन में संकल्प लिया कि वह बड़ी बहिन की तरह इनका सहारा बन कर इन्हें आत्मनिर्भर बनने में मदद करेगी। सभी बच्चों ने दीप्ति को घेर लिया। आज उन्हें भी अपनी बहिन मिल गई थी।
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