मुझे अमन चाहिए…

कविता 

डॉ. शिखा अग्रवाल 


मेरे शहर को ये क्या हो गया,
अमन ओ चैन का गुलिस्तां
नफरत की आग और
दहशत में लिपट गया।

दिवाली की राम राम
और ईद मुबारक,
गले मिल कर कहते रहे ,
मां और अम्मी में,
फर्क कब करते रहे।

पता नहीं कौन,
मेरे शहर को नजर लगा गया,
सेवई और खीर की
मिठास में,
जहर घोल चला गया।
इन नफरतों को दूर कर,
किस दिन हर एक बंदा,
इंसानियत औ अमन को
मज़हब बनाएगा।