कविता
डॉ. शिखा अग्रवाल
मेरे शहर को ये क्या हो गया,
अमन ओ चैन का गुलिस्तां
नफरत की आग और
दहशत में लिपट गया।
दिवाली की राम राम
और ईद मुबारक,
गले मिल कर कहते रहे ,
मां और अम्मी में,
फर्क कब करते रहे।
पता नहीं कौन,
मेरे शहर को नजर लगा गया,
सेवई और खीर की
मिठास में,
जहर घोल चला गया।
इन नफरतों को दूर कर,
किस दिन हर एक बंदा,
इंसानियत औ अमन को
मज़हब बनाएगा।
हे ईश्वर, या खुदा,
तू ही बता,
कब इंसान सिर्फ
इंसान की शक्ल में ही
पहचाना जाएगा।
(लेखिका राजकीय महाविद्यालय, सुजानगढ़ (चूरू) में सह आचार्य हैं)
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