कैसे भुलाएं?

यथार्थ 

डॉ. सत्यदेव आजाद, मथुरा  


यथार्थ को छैनी से
स्वप्नों को काटा छाँटा
नया रूप दिया
नई काया बनाई

फिर भी –
समझ में नहीं आता
आत्मा क्यों कुलबुलाती है
रेंगते कीड़े की तरह
खुशी भाग भाग जाती है

हो सकता है
शायद- यही न कि
मज्जा के कोमल स्वप्न
बज्र बन कर

कैसे सहें?
ह‌थौड़े की गहराई चोटें
कैसे ठुकरा दें?
दर्द की हमदर्दी
कैसे भुला दें ?
सान्त्वना आँसू की

तो फिर –
थोथे पन के ताने बाने से बुने
इन आदर्शों का
हम क्या करें ?

(लेखक आकाशवाणी के सेवानिवृत्त वरिष्ठ उद्घोषक और नारी चेतना और बालबोध मासिक पत्रिका ‘वामांगी’ के प्रधान संपादक हैं)

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