यथार्थ
डॉ. सत्यदेव आजाद, मथुरा
यथार्थ को छैनी से
स्वप्नों को काटा छाँटा
नया रूप दिया
नई काया बनाई
फिर भी –
समझ में नहीं आता
आत्मा क्यों कुलबुलाती है
रेंगते कीड़े की तरह
खुशी भाग भाग जाती है
हो सकता है
शायद- यही न कि
मज्जा के कोमल स्वप्न
बज्र बन कर
कैसे सहें?
हथौड़े की गहराई चोटें
कैसे ठुकरा दें?
दर्द की हमदर्दी
कैसे भुला दें ?
सान्त्वना आँसू की
तो फिर –
थोथे पन के ताने बाने से बुने
इन आदर्शों का
हम क्या करें ?
(लेखक आकाशवाणी के सेवानिवृत्त वरिष्ठ उद्घोषक और नारी चेतना और बालबोध मासिक पत्रिका ‘वामांगी’ के प्रधान संपादक हैं)
नोट:अपने मोबाइल पर ‘नई हवा’की खबरें नियमित प्राप्त करने के लिए व्हाट्सएप नंबर 9460426838 सेव करें और ‘Hi’ और अपना नाम, स्टेट और सिटी लिखकर मैसेज करें
बस सात साल और करिए इंतजार! अब 2030 के बाद हमेशा के लिए अमर हो जाएंगे आप
Good News: स्मॉल सेविंग्स स्कीम पर अब मिलेगा ज्यादा ब्याज, सरकार ने बढ़ाई ब्याज दरें | जानें नई दरें