रेलवे के 22 कर्मचारियों ने फर्जी दस्तावेजों पर 32 साल नौकरी कर ली, जांच करने में लगे 21 साल, तब तक लग चुका था दस करोड़ का चूना

नई दिल्ली 

रेलवे में  करीब दो दर्जन कर्मचारियों ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर 32 साल नौकरी कर ली और इस मामले की जांच करने में रेलवे ने इक्कीस साल लगा दिए। यह खुलासा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की एक रिपोर्ट में हुआ है। इस रिपोर्ट के आधार पर जब तक एक्शन होता तब तक सरकार को दस करोड़ का चूना लग चुका था।

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दिलचस्प बात ये है कि  रेलवे को इस फर्जीवाड़े की जानकारी नौ साल बाद लगी। इसके बाद जांच बैठी और इस जांच को पूरा करने में ही रेलवे को इक्कीस साल लग गए। इस दौरान फर्जी दस्तावेज पर नौकरी कर रहे लोग रेलवे से वेतन और भत्ता भी लेते रहे। रेलवे को इस मद में 10 करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ।

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संसद के इस शीतकालीन सत्र में प्रस्तुत कैग की रिपोर्ट में इसका खुलासा करते हुए बताया गया है कि जुलाई 2020 को मध्य रेलवे के विद्युत विभाग के कार्मिक अभिलेखों की जांच से पता चला कि मई 1989 से अप्रैल 1992 के बीच खलासी, मिस्त्री, मोटर वैन ड्राइवर के रूप में 22 ने निर्माण संगठन (महानगरी परिवहन परियोजना-रेलवे) में नौकरी हासिल की थी। उनके द्वारा जमा दस्तावेज फर्जी हैं, इसका पता मध्य रेलवे को नौ साल बाद (1998, 2001 और 2004) चला। इस आधार पर रेलवे ने सितंबर 2001 से अक्टूबर 2004 के बीच कर्मचारियों को आरोपपत्र जारी किया।

रेलवे बोर्ड ने 1993 में बोला फर्जी कर्मचारियों को बर्खास्त करो
रेलवे की सतर्कता का यह आलम तब है, जब बोर्ड ने जुलाई 1993 में सभी जोनल रेलवे को पत्र लिखा था, जिसमें कहा गया कि नौकरी पाने के लिए फर्जी दस्तावेज लगाने वालों को तुरंत सेवा से बर्खास्त कर दिया जाए। लेकिन आदेश भी नहीं माना गया।

कैग की सिफारिश की भी कर दी अनदेखी
कैग ने कहा है कि मध्य रेलवे फर्जी दस्तावेजों की समय पर जांच करने में विफल रहा। इस पर कैग ने जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई की सिफारिश भी की। इससे पूर्व कैग ने अप्रैल 2022 में फर्जी दस्तावेजों की मदद से 22 लोगों के रेलवे में नौकरी पाने व समय पर जांच पूरी नहीं करने के बारे में रेलवे बोर्ड के सामने रखा था। लेकिन कैग की इन सिफारिशों की भी अनदेखी कर दी गई। और फर्जी दस्तावेजों पर कर्मचारी मजे से नौकरी करते रहे।

रेलवे  बोर्ड ने जुलाई 2022 को अपने जवाब में कहा कि उस वक्त प्रचलित प्रक्रिया में तुरंत जांच की जरूरत नहीं थी, इसलिए विलंब हुआ। साथ ही जांच अधिकारियों की प्रोन्नति और उक्त दोषी कर्मियों को पूछताछ के लिए कार्यमुक्त नहीं किया गया, इससे जांच में देरी हुई। हालांकि, कैग ने रेलवे बोर्ड के उत्तर से असहमति जताई।

तीन को रिटायरमेंट से चार दिन पहले हटाया
कैग की रिपोर्ट्स के अनुसार 22 फर्जी कर्मचारियों में से 18 को अक्टूबर 2021 में नौकरी से हटाया गया। तीन कर्मियों को सेवा से तब हटाया गया, जब उनकी सेवानिवृत्ति के चार से पांच दिन बचे हुए थे। इन सभी को वेतन-भत्ते मद में रेलवे ने 10.37 करोड़ जारी किए।

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प्रभु-सहचर्य

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