Nalanda University: 600 साल तक दुनिया में ज्ञान की धमक बिखेरता रहा नालंदा विश्वविद्यालय, हमलावर खिलजी ने ऐसे कर दिया बर्बाद | यहां जानें इसका पुराना वैभव

नालंदा 

भारत के प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) की धाक पूरी दुनिया में थी इसमें अकूत ज्ञान का भण्डार इसकी बड़ी दौलत थी जिसकी बदौलत यह विश्वविद्यालय पूरी दुनिया में करीब 600 साल से भी ज्यादा समय तक ज्ञान की धमक बिखेरता रहा लेकिन तेरहवीं सदी में एक ऐसा तुर्क हमलावर आया कि उसने इस विश्वविद्यालय को बर्बाद कर दिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को बिहार के राजगीर में ऐतिहासिक नालंदा यूनिवर्सिटी के नए कैंपस का उद्घाटन किया मोदी ने पहले विश्वविद्यालय की पुरानी धरोहर को करीब से देखाअब कहा जा रहा है कि 815 सालों के लंबे इंतजार के बाद यह फिर से अपने पुराने स्वरूप में लौट रहा है

दरअसल, नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय है जो इतना प्राचीन इतिहास समेटे हुए हैं, जिसे लेकर कई किताबें लिखी गई हैं जब दुनिया में विश्वविद्यालय बनना शुरू हुए थे, उस वक्त नालंदा कई सौ सालों की अपनी लेगेसी बना चुका था 

नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया की टॉप यूनिवर्सिटी ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज से भी पुराना हैनालंदा तीन शब्दों से मिलकर बना है- ना, आलम और दा यानी ऐसा उपहार, जिसकी कोई सीमा नहीं है इसे 5वीं सदी में गुप्त काल में बनाया गया था और 7वीं शताब्दी तक यह महान यूनिवर्सिटी बन चुकी थी यह एक विशाल बौद्ध मठ का हिस्सा था और कहा जाता है कि इसकी सीमा करीब 57 एकड़ में थी इसके अलावा कई रिपोर्ट्स में इसे और भी बड़ा होने का दावा किया जाता है इसके बारे में 19वीं शताब्दी के दौरान पता चला था कई सदी तक ये विश्वविद्यालय जमीन में दबा हुआ था1812 में बिहार में लोकल लोगों को बौद्धिक मूर्तियां मिली थीं, जिसके बाद कई विदेशी इतिहासकारों ने इस पर अध्ययन किया इसके बाद इसके बारे में पता चला

नालंदा विश्वविद्यालय में समय समय पर यहां महान शिक्षकों ने पढ़ाई करवाई थी इन महान शिक्षकों में नागार्जुन, बुद्धपालिता, शांतरक्षिता और आर्यदेव का नाम शामिल हैवहीं यहां कई देशों से लोग पढ़ने आते थेचीन के प्रसिद्ध यात्री और विद्वान ह्वेन सांग, फाह्यान और इत्सिंग भी यहां से पढ़े हैं ह्वेन सांग, नालंदा के आचार्य शीलभद्र के शिष्य थे ह्वेन सांग ने 6 साल तक नालंदा विश्व विद्यालय में रहकर कानून की पढ़ाई की थी  

विशाल कैंपस
नालंदा विश्वविद्यालय की भव्यता इतनी थी कि यहां 300 कमरे, 7 बड़े कक्ष और पढ़ाई के लिए 9 मंजिला एक लाइब्रेरी थी जिसमें 90 लाख से ज्यादा किताबें रखी हुई थीसाथ ही यह कई एकड़ में फैला हुआ था यहां हर सब्जेक्ट के गहन अध्ययन के लिए बनाई गई थीबताया जाता है कि जब इसमें आग लगाई गई तो इसकी लाइब्रेरी 3 महीने तक जलती रही इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि उसमें कितनी किताबें रही होंगी

यह विश्वविद्यालय भारत के ज्ञान से सदियों तक दुनिया को रोशन करता रहा इस विश्वविद्यालय को ज्ञान को भंडार माना जाता रहा है यहां धार्मिक ग्रंथों के अलावा लिट्रेचर, थियोलॉजी, लॉजिक, मेडिसिन, फिलोसॉफी, एस्ट्रोनॉमी जैसे कई सब्जेक्ट पढ़े जाते थेकहा जाता है कि उस दौर में जो सब्जेट यहां पढ़ाए जा रहे थे, वो कहीं भी नहीं पढ़ाए जा रहे थे

हालांकि नालंदा को कई बार मुश्किलों का सामना करना पड़ा अपने 700 साल के लंबे सफर के बाद 12वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी ने एक हमले में इसे जला दियाकहा जाता है कि एक बार बख्तियार खिलजी बहुत ज्यादा बीमार पड़ गया उसके बाद उसका इलाज कई तरीकों से किया गया और इसे लेकर कई तरह की कहानियां है कहा जाता है कि अपने इलाज से नाखुश होने के बाद गुस्से में खिलजी ने इसे जलवा दिया था

ह्वेनसांग ने भी नालंदा से ली शिक्षा
नालंदा विश्वविद्यालय की नींव गुप्त राजवंश के कुमार गुप्त प्रथम ने 425 से 470 ईश्वी के बीच रखी थी गुप्त वंश के पतन के बाद भी हर्षवर्धन और पाल शासकों के काल में यह विश्वविद्यालय फलताफूलता रहा पांचवीं सदी में बने प्राचीन विश्वविद्यालय में करीब 10 हजार छात्र पढ़ते थे, जिनके लिए 1500 अध्यापक हुआ करते थेछात्रों में अधिकांश एशियाई देशों चीन, कोरिया और जापान से आने वाले बौद्ध भिक्षु होते थेइतिहासकारों के मुताबिक, चीनी भिक्षु ह्वेनसांग ने भी सातवीं सदी में नालंदा में शिक्षा ग्रहण की थीउन्होंने अपनी किताबों में नालंदा विश्वविद्यालय की भव्यता का जिक्र किया है यह बौद्धों के दो सबसे अहम केंद्रों में से एक था

मुश्किल मौखिक साक्षात्कार में शामिल होना पड़ता था
नालंदा में प्रवेश पाना बेहद कठिन था। यहां पढ़ाई के इच्छुक छात्रों को नालंदा के शीर्ष प्रोफेसरों के साथ मुश्किल मौखिक साक्षात्कार में शामिल होना पड़ता था और अपने ज्ञान का प्रमाण देना पड़ता था। जो लोग भाग्यशाली रहे, उन्हें भारत के प्रतिष्ठित विद्वानों और बौद्ध गुरुओं जैसे धर्मपाल और सीलभद्र आदि द्वारा पढ़ाया गया। पुस्तकालय की 90 लाख हस्तलिखित, ताड़ के पत्तों की पांडुलिपियाँ दुनिया में बौद्ध ज्ञान का सबसे समृद्ध भंडार थीं। उन ताड़ के पत्तों की पुस्तकों और चित्रित लकड़ी के पन्नों में से केवल मुट्ठी भर ही आग से बच पाए, जिन्हें भागते हुए भिक्षुओं ने अपने साथ ले लिया था। एक बार दलाई लामा ने भी कहा था कि ‘हमारे पास जो भी ज्ञान है, उसका स्त्रोत नालंदा से आया है।’

दुनिया बदलने में नालंदा की भूमिका
भारतीय गणित के जनक माने जाने वाले आर्यभट्ट के बारे में अनुमान लगाया जाता है कि उन्होंने छठी शताब्दी ईस्वी में विश्वविद्यालय का नेतृत्व किया था। आर्यभट्ट ने ही दुनिया को शून्य से परिचित कराया और शून्य को अंक के रूप में मान्यता दी, जो एक क्रांतिकारी अवधारणा थी। इस शून्य ने गणितीय गणनाओं को सरल बनाया और बीजगणित जैसे अधिक जटिल विषयों को विकसित करने में मदद की। शून्य के बिना, हमारे पास कंप्यूटर नहीं होते। यही वजह है कि दुनिया को बदलने में नालंदा की भूमिका बेहद अहम रही। आर्यभट्ट की खोज ने ही दक्षिण भारत और पूरे अरब प्रायद्वीप में गणित और खगोल विज्ञान के विकास बढ़ावा दिया। बौद्ध शिक्षाओं और दर्शन को पूरे एशिया में फैलाने में भी नालंदा की अहम भूमिका रही। 

और ऐसे तबाह कर दी गई हमारी विरासत
1190 के दशक में तुर्क-अफगान सैन्य जनरल बख्तियार खिलजी के नेतृत्व में आक्रमणकारियों की एक लुटेरी टुकड़ी ने विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया था। इतिहासकार बताते हैं कि एक समय बख्तियार खिलजी बहुत बीमार पड़ा। उसके हकीमों ने बख्तियार का बहुत उपचार किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। किसी ने बख्तियार खिलजी को नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्रजी से इलाज कराने की सलाह दी। जिसके बाद आचार्य राहुल श्रीभद्रजी को बुलाया गया तो बख्तियार खिलजी ने उनके सामने एक अजीब शर्त रख दी कि वह उनके द्वारा दी जाने वाली किसी आयुर्वेदिक दवाई को नहीं खाएगा। आचार्य ने भी खिलजी की शर्त मान ली और उसे बस कुरान पढ़ने की सलाह दी।

बताया जाता है कि कुरान पढ़ने के बाद वो ठीक हो गया। कहा जाता है कि आचार्य राहुल श्रीभद्रजी ने कुरान के पन्नों पर दवा का लेप लगाया था, जिससे दवा खिलजी के हाथों में लगती और जब वह पन्ने पलटने के लिए अपनी ऊंगली जीभ पर लगाता तो दवाई उसके मुंह में चली जाती। इस तरह बख्तियार खिलजी ठीक हो गया। जब बख्तियार खिलजी को इसका पता चला तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि भारतीय विद्वान उसके हकीमों से भी ज्यादा ज्ञानी हैं। माना जाता है कि खिलजी को लगने लगा कि नालंदा से मिल रहीं शिक्षाएं इस्लाम से प्रतिस्पर्धा कर रही हैं। इसलिए उसने नालंदा विश्वविद्यालय परिसर में आग लगा दी। ऐसा भी माना जाता है कि नालंदा के समय बौद्ध धर्म और उसकी शिक्षाएं तेजी से फैल रहीं थी, ऐसे में बौद्ध धर्म को समाप्त करने के लिए उसने नालंदा में आग लगाई।  

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2016 में विरासत स्थल घोषित
साल 2016 में नालंदा के खंडहरों को संयुक्त राष्ट्र विरासत स्थल घोषित किया गया था, इसके बाद विश्वविद्यालय का निर्माण कार्य 2017 में शुरू किया गया विश्वविद्यालय का नया कैंपस नालंदा के प्राचीन खंडहरों के पास बनाया गया है इस नए कैंपस की स्थापना नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 के माध्यम से की गई हैइस अधिनियम में स्थापना के लिए 2007 में फिलीपींस में आयोजित दूसरे पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में लिए गए निर्णय को लागू करने का प्रावधान किया गया था

अब ऐसा है नया स्वरूप 
आज नालंदा विश्वविद्यालय फिर से चर्चा में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन किया है। 455 एकड़ में फैले नए परिसर में कुल 221 संरचनाएं हैं। मशहूर आर्किटेक्ट बीबी जोशी ने नालंदा विश्वविद्यालय के प्रारूप को डिजाइन किया है। साल 2014 में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस ऐतिहासिक विश्वविद्यालय के निर्माण की नींव रखी थी। 

नालंदा यूनिवर्सिटी में दो अकेडमिक ब्लॉक हैं, जिनमें 40 क्लासरूम हैं यहां पर कुल 1900 बच्चों के बैठने की व्यवस्था है यूनिवर्सिटी में दो ऑडिटोरयम भी हैं जिसमें 300 सीट हैं इसके अलावा इंटरनेशनल सेंटर और एम्फीथिएटर भी बनाया गया है, जहां 2 हजार लोगों के बैठने की क्षमता है यही नहीं, छात्रों के लिए फैकल्टी क्लब और स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स सहित कई अन्य सुविधाए भी हैंनालंदा यूनिवर्सिटी का कैंपस ‘NET ZERO’ कैंपस हैं, इसका मतलब है कि यहां पर्यावरण अनुकूल के एक्टिविटी और शिक्षा होती हैकैंपस में पानी को रि-साइकल करने के लिए प्लांट लगाया गया है, 100 एकड़ की वॉटर बॉडीज के साथ-साथ कई सुविधाएं पर्यावरण के अनुकूल हैं

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