नारी की आर्थिक समस्या

विधि अग्रवाल  |  ok@naihawa.com


स्त्री और पुरुष समाज के दो अभिन्न अंग हैं। प्रत्येक एक दूसरे के अभाव में अपूर्ण है। समाज में वे पति-पत्नी के रूप में भी हमारे समक्ष आते हैं। पति का कार्य क्षेत्र बाह्य संसार है और पत्नी का कार्यक्षेत्र है गृह संसार। पति धन का उपार्जन  करता है और पत्नी उस धन से अपने गृह को संचालित करती है।


 

यह प्रथा आज से नहीं,जब से मानव ने सभ्यता का परिधान धारण किया है , तभी से भारतीय समाज में  प्रचलित है। अब प्रश्न यह उठता है कि इतनी लम्बी  अवधि में यह प्रणाली कहां तक सफल रही है। इस रीति के कारण नारी वर्ग ने कितनी यातना सहन की है , इस बात की किसी को चिंता नहीं। आज नारी को मालूम है कि अपनी दशा को सुधारने के लिए उसे ही आगे कदम बढ़ाना होगा,वरना स्वभाव से स्वतंत्र पुरुष कभी भी इस ओर ध्यान नहीं देगा ।

यह बात तो सही है कि किसी भी देश और समाज दोनों का विकास तभी हो सकता है जब महिला और पुरुष दोनों का समान विकास हो। पुरुष यदि बाह्य संसार का स्वामी है तो महिला भी अपने गृह संसार की पूरी तरह से स्वामिनी है। पुरुष यदि अपनी योग्यता से धन उपार्जन करता है तो उसका उचित व्यय भी महिला की योग्यता और कौशल पर निर्भर है। पर महिला की योग्यता और चतुराई पुरुष की कमाई पर निर्भर है। धन के अभाव में वह व्यर्थ है। वह गृहस्वामिनी होते हुए भी पुरुष पर निर्भर बनकर रह जाती है। उसे अपनी किसी छोटी से छोटी आवश्यकता की पूर्ति के लिए पुरुष के आगे हाथ पसारना पड़ता है।

यह बात उस महिला वर्ग के लिए नहीं जो बहुत आगे बढ़ चुकी है और पुरुषों के समान देश और समाज के कार्य में लगी हुई हैअथवा जिस पर लक्ष्मी की विशेष कृपा है। हम बात कर रहे हैं समाज के मध्यम वर्ग की महिलाओं की। वह आज भी पुरुषों के समान अधिकार के लिए जूझ रही है। इसका मतलब यह नहीं कि महिलाएं एकदम पुरुषों के खिलाफ विरोध में खड़ी हो जाएं और सड़कों पर आर्थिक आजादी के नारे लगाते हुए देश में निकल पड़े। यह तो सर्वथा अनुचित और प्रकृति के खिलाफ आवाज होगी। और न इसका मतलब ये है कि महिलाएं अपने गृह कार्य को तिलांजलि  देकर पुरुषों के साथ ऑफिसों में काम करने पर तुल जाएं।

महिला का अपना एक पृथक व्यक्तित्व है। पुरुष की भांति उसकी भी इच्छाएं हैं और उनकी पूर्ति के लिए आवश्यकता है धन की। अन्य कई देशों में महिलाएं प्राय: मुक्त हैं। यह समस्या तभी सुलझ सकती है जब हमारी सरकार इस ओर ध्यान दे। सरकार की ओर से प्रत्येक नगर ,ग्राम कस्बे और शहर में ऐसी संस्थाएं खोली जाएं जहां महिलाएं कुछ काम करें। गृह उद्योगों और कुटीर उद्योगों को उन्नत बनाया जाए। इन सब संस्थाओं का सब कार्य महिलाओं के अधीन हो। महिलाएं अपनी सुविधा अनुसार यहां आकर दस्तकारी, बुनाई ,सिलाई और हाथ के अन्य कार्य करें। इस प्रकार वे अपने देश के विकास में भी योगदान दे सकती हैं और अपनी आर्थिक समस्या को भी सुलझा सकती हैं। हालांकि भारत के कई राज्यों में महिला स्वयं सहायता समूह सरकारों के सहयोग से बड़ी संख्या में काम कर रहे हैं। इनको और मजबूत एवं विस्तारित  करने जरूरत है।


 

Art by - Ram Khiladi Meena

एक बात और। आज उच्च शिक्षा ग्रहण करने के मामले में महिलाओं का ग्राफ तेजी से आगे बढ़ रहा है। वे स्वाबलंबी बनने की दिशा में आगे बढ़ रही हैं। उनके लिए सरकारी और निजी क्षेत्र में नौकरी करने के द्वार खुलते  जा रहे हैं। पर यहां महिलाओं के सामने एक बड़ी समस्या है । उन पर गृहस्थ को संभालने की एक अतिरिक्त बड़ी जिम्मेदारी भी होती है। ऐसे में वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी नौकरी नहीं कर पाती और मन मसोस कर रह जाती हैं। ऐसे में सरकारें ऐसी महिलाओं की मदद कर सकती हैं। इन महिलाओं के लिए स्थाई प्रकृति की ऐसी जॉब्स क्रिएट की जा सकती हैं जो वे अपनी सुविधा अनुसार घर पर ही कर सकती हैं।


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