अब फुरसत से ही डरते हैं…

जब प्यारा बचपन बीता था,
तब खुश थे अब तो बड़े हुए,
मन की करने का जज्बा था,

छा गए फिजा में अजब रंग…

स्वागत सुहावने सावन का,
छा गए फिजा में अजब रंग।
धरती अम्बर सब प्रफुल्लित

मुलाकात…

बचपन से मुलाकात कर लेते हैं,
दोस्तों से कही अनकही बात कर लेते हैं।
उसके डब्बे से मैंने भी रोटी चुराकर खाई थी,
ये बात उसको मैंने उसको कभी

साहिल की तलाश…

कभी फूल सा हल्का दिल भी,
पत्थर सा भारी होता है,
मनचाहे और अनचाहे में,

अमृत की पुड़िया जैसा है…

प्रेम पूजा शरणागति सा है
यह बुद्धि विवेक सुमति सा है,

कोई तो है…

जब कंधे पर हाथ रख,
कोई हौले से कहता है
… मैं हूं ना,

चीख रही थी अबला जर जर…

वो मार रहा था चाकू पत्थर,
चीख रही थी अबला जर जर l
मानवता शर्मसार खड़ी थी,

किताब ही है जिंदगी…

जिंदगी एक किताब ही तो है,
हर दिन एक पृष्ठ है,
जिस पर

कटे वृक्ष सिमटते पर्वत…

कटे वृक्ष सिमटते पर्वत, पीड़ा देने वाले हैं
एक दिन जब सब मिट जांयेंगे, पड़ें जान के लाले है।

भूख कौ डर…

आज जा बिचार ते
किसना कौ मन
कांटे के तारन में
जकरों परयौ है