सुनीता जैन “सुनीति”
बसंत पंचमी
हे वीणा वादिनी मां…
हे वीणा वादिनी मां, मन ज्योतिर्मय कर दो।
अंधकार में भटका हूं, पथ आलोकित कर दो।
मुझे ऐसी शक्ति दो, निर्बल का सहारा बनूं,
दीन,दुखियों की सेवा, हर दम ही करता रहूं।
दो दया भाव मुझको, उर में करुणा भर दो।
हे हंस वाहिनी मां, मन ज्योतिर्मय कर दो।
मुझे ऐसी वाणी दो,सबको ही लुभाता रहूं,
वाणी की मधुरता से, मैत्री भाव बढ़ाता रहूं।
बल, बुद्धि, विवेक से मां, अंतस मेरा भर दो।
हे स्वर की देवी मां ,मन ज्योतिर्मय कर दो।
मुझे ऐसी भक्ति दो, तुझमें ही खो जाऊं,
खोकर मैं मेरा “मैं”, तुमको मैं पा जाऊं।
मेरा तन,मन समर्पित मां,जीवन मेरा ले लो।
हे पुस्तक धारणी मां,मन ज्योतिर्मय कर दो।
मुझे ऐसी सृजनता दो,तेरा गुण गान करूं,
भावों के सागर से ,मंथन कर छंद लिखूं।
कृपा कालिदास जैसी, कंठ में रस भर दो।
हे सरस्वती देवी मां,मन ज्योतिर्मय कर दो।
साधक हूं तेरा मां, मेरे दुर्गुण दूर कर दो
मेरे मन की वीणा को, गुंजित तुम कर दो
चातक हूं मै तेरा, सरगम मुझको दे दो।
वंदन मैं करता हूं ,सुनीति, समझ दे दो।
हे वीणा वादिनी मां,मन ज्योतिर्मय कर दो।
अंधकार में भटका हूं,पथ आलोकित कर दो।
(लेखक रा. उ.मा. विद्यालय डहरा (कुम्हेर) भरतपुर में व्याख्याता हैं।)
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