जोधपुर
एक वकील को हाईकोर्ट की गरिमा को ठेस पहुंचाना आखिर भरी पड़ गया। हाईकोर्ट ने इस वकील पर 50 हजार का जुर्माना लगा दिया है और वकील को आदेश दिया है कि वह जुर्माना राशि को एक माह के भीतर राजस्थान विधिक सेवा प्राधिकरण के पास जमा कराए। जब तक जुर्मना राशि जमा नहीं होगी तब तक इस वकील के प्रदेश की किसी भी अदालत में पैरवी करने पर भी रोक लगा दी गई है।
दरअसल अधिवक्ता सुमित सिंघल ने गत 3 दिसंबर को रिव्यू एप्लीकेशन दायर कर हाईकोर्ट के फैसले पर आपत्ति उठाते हुए गंभीर आरोप लगाए थे। हाईकोर्ट न्यायाधीश संदीप मेहता व मनोज कुमार गर्ग की खंडपीठ ने इसे अदालत की गरिमा के खिलाफ बताते हुए रिव्यू एप्लीकेशन को खारिज कर दिया। और पचास हजार का जुर्माना लगा दिया।
अधिवक्ता सुमित सिंघल ने रिव्यू एप्लीकेशन दायर करते हुए कहा कि फैसला ओपन कोर्ट की बजाए चैंबर में लिखवाया गया, इसलिए फैसले को दुरुस्त करना चाहिए। इसके अलावा फैसले को गत 30 जुलाई को सुरक्षित रखा गया था, जबकि इसे 3 दिसंबर को सुनाया गया, जिसमें पांच महीन को गेप है। अधिवक्ता ने यह भी कहा कि रेफरेंस का नोटिस समाचार पत्रों में प्रकाशित होना चाहिए था तथा प्रदेश के सभी बार एसोसिएशन को भी पक्ष रखने के लिए आमंत्रित किया जाना चाहिए था।
इस पर कोर्ट ने कहा कि वकील द्वारा लगाए गए आरोप अदालत की गरिमा को ठेस पहुंचाने और उसका सम्मान कम करने वाले हैं। यह निदंनीय भी है। याचिकाकर्ता खुद बार काउंसिल ऑफ राजस्थान में वकील के रूप में पंजीकृत है, जिन्हें न्यायालय के अधिकारी के रूप में काम करने की जरूरत है। ऐसा प्रतीत होता है कि उनके मन में अदालत के प्रति बहुत कम सम्मान है, जो न्याय प्रशासन की अवहेलना है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कोर्ट का यह भी कहना था कि याचिकाकर्ता का वकील के रूप में नाम नहीं लिखने से भी वह नाराज हुआ, ऐसा प्रतीत होता है। कोर्ट ने कहा कि उनके द्वारा पेश आवेदन में व्याकरण व वर्तनी की त्रुटियां हैं, जिसकी उम्मीद प्रदेश के सबसे बड़े कोर्ट हाईकोर्ट में पेश होने वाले वकीलों से नहीं की जा सकती है। कोर्ट ने आदेश में उनके द्वारा की गई त्रुटियों को भी उल्लेखित किया है।
खंडपीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 395 आपराधिक संदर्भ का प्रावधान करती है, लेकिन वकीलों के विचार आमंत्रित करने के लिए बाध्य नहीं करती है।
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