भंडाफोड़: बैंक से लोन लेकर फर्जीवाड़े से बेच दी लक्जरी कारें, PNB मैनेजर सहित नौ गिरफ्तार, कई बैंक और आरटीओ कर्मचारी भी रडार पर

सहारनपुर 

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में कोतवाली पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीम ने एक ऐसे गिरोह का भंडाफोड़ किया है जो बैंक से लोन लेकर लक्जरी कारें खरीद कर फर्जीवाड़ा कर लोगों को बेच देता था। पुलिस ने इस गिरोह में शामिल PNB के एक मैनेजर सहित नौ लोगों को गिरफ्तार किया है। अभी भी बैंक और आरटीओ के अन्य कई कर्मचारी भी पुलिस के रडार पर हैं। पुलिस को इनसे पूछताछ में अहम सुराग हाथ लगे हैं। आरोपियों के पास 14 लक्जरी कारें भी बरामद हुई हैं। इनके कुछ साथी फरार हैं।

सहारनपुर एसपी सिटी राजेश कुमार ने पत्रकारों को बताया कि कुछ दिन पहले एक व्यक्ति ने नगर कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि उसके साथ फर्जीवाड़ा हुआ है। उसे बैंक से ऋण पर ली गई कार धोखाधड़ी से बेची गई है। तब पुलिस ने मामले की जांच शुरू की।आरोपियों ने अंबाला रोड पर बालाजी मोटर कार सेल्स के नाम से कार्यालय भी बना रखा है।

इन्हें किया गिरफ्तार

  • PNB मैनेजर राजीव महेश्वरी पुत्र स्व. राधेश्याम महेश्वरी निवासी माधवनगर नगर, कोतवाली सहारनपुर
  • बादल पुत्र राजेश निवासी खलासी लाइन, दुर्गापुरी कोतवाली सदर बाजार, सहारनपुर
  • सिद्धार्थ सिरोही पुत्र अनिल कुमार निवासी प्रेमविहार दिल्ली रोड, कोतवाली सदर बाजार, सहारनपुर
  • बिन्नी पुत्र पुरूषोत्तम डंग निवासी न्यू पटेल नगर, कोतवाली थाना सदर बजार
  • मनीष पुत्र गुलशन निवासी वेस्ट सागरपुर, थाना सागरपुर साउथ वेस्ट, नई दिल्ली
  • सोनू उर्फ सुनील पुत्र तिलकराज निवासी ज्वालानगर गली नंबर तीन, थाना नगर कोतवाली, सहारनपुर
  • आशीष कुमार पुत्र सुरेंद्र कुमार निवासी गांव शेखपुरा, थाना खतौली, मुजफ्फरनगर
  • रोहित पुत्र अशोक कुमार निवासी कैलाश पुरी एक्सटेन्शन, पालम कालोनी, नई दिल्ली
  • पंकज गुजराल पुत्र अश्वनि कुमार गुजराल निवासी श्याम नगर कालोनी भूतेश्वर कोतवाली मंडी, सहारनपुर
    फरार आरोपी
  • राजीव पाठक निवासी फरीदाबाद, हरियाणा
  • मयंक पुत्र राजेश निवासी मुक्ति वाड़ा रेवाड़ी, हरियाणा

ऐसे करते थे फर्जीवाड़ा
एसपी सिटी ने बताया कि पूछताछ में आरोपियों से पता चला कि यह लोग अपने और अपने परिचितों के नाम पर गाड़ियों ऋण पर खरीदते थे, जबकि दिल्ली रोड स्थित PNB की शाखा का मैनेजर राजीव माहेश्वरी निवासी माधवनगर से मिलकर डीडी किसी और के नाम बनवा लेते थे। डीडी या फिर बिल पर हाई परचेज नहीं लिखवाते थे। इसके बाद गाड़ी की आरसी और बिल पर ऋण होने की जानकारी हटवा देते थे। इसके बाद गाड़ी को बेच देते थे। एसपी ने बताया कि आरोपी एक वर्ष तक गाड़ी की किश्त देते हैं, ताकि खरीदार को यह न लगे कि गाड़ी पर कोई ऋण चल रहा है। इसके बाद आरोपी गायब हो जाते जाते थे। जब खरीददार को गाड़ी की किश्त देनी पड़ती तो उसे पता चलता था कि गाड़ी पर लोन लिया गया है।

कई बैंक और आरटीओ कर्मचारी भी रडार पर
पुलिस के अभी नौ आरोपी हत्थे चढ़े हैं, लेकिन इस गैंग में कई अन्य लोगों के शामिल होने की भी आशंका है। पुलिस सूत्रों केअनुसार  इस मामले में कई बैंक अधिकारियों, आरटीओ कर्मचारियों और कार कंपनियों के कर्मचारियों की भी गर्दन फंस सकती है। क्योंकि, आरसी पर ऋण के नंबर हटवाने में इन सभी की मिलीभगत की आशंका है। पुलिस इस लाइन पर भी जांच कर रही है। जांच में सामने आया है कि सभी आरोपी लंबे समय से सुनियोजित तरीके से फर्जीवाड़े को अंजाम दे रहे थे।

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