फिर से महक उठी है बगिया, खुशियों का हो ज्यों पगफेरा, नई महक है, रूप नया सा, नव श्रृंगारित हरित धरा का। सेमल के फूलों से महका, नव पल्लव से वृक्ष सलोना, नव सिंदूरी नव युवती सा, उपवन का हर कोना कोना।
रंगों की अद्भुत ये सृजना, सरसों, गेंदे के पुष्पों का, चटक सुनहरी बिछा बिछौना, या स्वर्णिम किरीट है पहना।
फूलों पर तितली का आना, भंवरों का गुंजन बढ़ जाना, मुरझाए जीवन में फिर से, ज्यों आशा की ज्योत जगाना।
सूर्य रश्मि ने रूप सजाया, दिल हर्षाता मौसम आया, बासंती बयार में रंग कर, मन बासंती सा महकाया।
कोयल ने संगीत सुनाया, अमराई में बौर भर आया, महक उठी है, पूरी वसुधा, इठलाता बसंत जो आया।।
(लेखिका राजकीय महाविद्यालय, सुजानगढ़ में सह आचार्य हैं)