भरतपुर स्थापना दिवस विशेष
मुरारी शर्मा
राजा प्रतापसिंह महाराजा सूरजमल के छोटे भाई थे। इनकी माता का नाम देवकी तथा पिता का नाम बदनसिंह था। राजा प्रतापसिंह राजकाज एवं सैन्य कला में विशेष रूप से पारंगत थे। इसलिए राजा बदनसिंह ने अपने पुत्र प्रतापसिंह को वैर का राजपाट देकर वैर का राजा नियुक्त कर दिया। आचार्य सोमनाथ के शब्दों में राजा प्रतापसिंह का वर्ण कुंदन चौड़ा मस्तक, बांकी भौहें, मुखमण्डल पर दीप आभा, नेत्रों में चमक, शरीर सुडौल आकर्षक था। उसका स्वभाव सरलता, सरसता, विनम्रता, स्पष्टवादिता से ओतप्रोत था। इस प्रकार राजा प्रतापसिंह दुर्लभ व्यक्तित्व के धनी थे।
प्रताप दुर्ग
भरतपुर जिले के दक्षिण पश्चिम में स्थित वैर कस्बे में 1726 ई. में इस गढ़ की नींव डाली गई। कस्बे के बीचों-बीच मैदानी भाग में राजा प्रतापसिंह द्वारा दुर्ग का निर्माण कार्य कराते समय प्राचीन दुर्ग निर्माण प्रणाली का ध्यान रखा गया। चाणक्य के प्रसिद्ध ग्रन्थ अर्थशास्त्र में दुर्ग निर्माण कला के अनुसार दुर्ग में राजा प्रतापसिंह ने क्रमश: उत्तर तथा दक्षिण में दो विशाल द्वार बनवाए। उनपर भारी भरकम किवाड़ चढ़वाए। दुर्ग की पूर्ण सुरक्षा के लिए जलप्लावित खाई, पुख्ता दीवारें, धर्नुर्धारियों तथा बन्दूकचियों के लिए बैठने के स्थल बनवाए। आज खाई के स्थान पर अतिक्रमण व निर्माण कार्य हो गए हैं। फिर भी दुर्ग की मौलिक विशेषताएं बरकरार बनी हुई है। प्रताप दुर्ग के भीतरी भागों में जल व्यवस्था के लिए कुएं, बारुदखान, शस्त्रागर, सैनिक निवास, रानी महल, दीवाने खास, दीवानेआम महल आदि बनवाए गए।
कस्बे में प्रवेश के लिए उत्तर में भरतपुर व कुम्हेर दरवाजे, पूर्व में बयाना दरवाजा तथा खिड़की दरवाजा, दक्षिण में सीता दरवाजा, पश्चिम में भुसावर दरवाजा का निर्माण कार्य कराया जाकर द्वारों पर विशाल भारी भरकम कपाट चढ़वाए गए जिनपर लोहे की भारी चादरें चढ़ी थी। खिड़की दरवाजा का मौलिक स्वरूप नष्ट हो चुका है।
प्रताप फुलबाड़ी
कस्बे को आकर्षक बनाने के लिए 42 बीघा 19 विश्वा क्षेत्र में राजा प्रतापसिंह ने भव्य फुलबाड़ी का निर्माण कार्य कराया। इसमें मोरछली के वृक्षों के कारण फुलबाड़ी का सुन्दर रूप अति रमणीक लगता था जिसमें बनी केशर क्यारियां हर आने वाले दर्शकों को अपनी ओर खींचती नजर आती थीं। आज भी वैर के लोक मानस में फुलबाड़ी को लेकर पुरानी कहावत प्रचलित है ‘राजपाल कौ राज बिगड़ गयो और वैर बिगड़ गयो अब दारी। अगल-बगल यामे गढ़ खिंचबायों बीच लगादई फूलबारी, मोरछली की छवि न्यारी।’ प्रताप फुलबाड़ी में वसुंधरा राजे सरकार में करोड़ों राशि खर्च कर प्रताप फुलबाड़ी के वैभव को पुनः लौटाने का सराहनीय कार्य कराया गया लेकिन राज बदलने के बाद फुलबाड़ी में लोगों ने पुन: ऊपले थापने शुरू कर दिए। स्थानीय प्रशासन द्वारा इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया। फुलबाड़ी में लगाई गई बेशकीमती जालियों को धराशायी कर दिया। फिर भी प्रशासन ने कोई ध्यान नहीं दिया। पुरातत्व विभाग ने एक कर्मचारी को तैनात कर रखा है लेकिन कर्मचारी भी इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
सफेद महल
फुलबाड़ी के बीचों – बीच राजा प्रतापसिंह द्वारा विश्व धरोहर के रूप में श्वेत महल का निर्माण कराया गया। श्वेत महल के अग्र भाग में बंगाली व मुस्लिम शैली की स्थापत्य कला के प्रतीक फव्वारे लगाए गए। इस फुलबाड़ी में फालसे एवं अंजीरों के पेड़ बहुतायत में थे। श्वेतमहल के सामने अंजीरों की इतनी अधिकता थी कि लोकगायक अपनी शैली में अंजीरों का महत्व बताते हुए गाते थे ‘पडे मोती मैदान में काऊ पे चुगो जाए तो चुगो।’
श्वेत महल के सामने पानी का बड़ा पक्का कुण्डा आज भी है जिसमें जगह-जगह फब्बारे लगाए गए हैं। फुलबाड़ी के उत्तर में लाल महल तथा दक्षिण में श्रीमदनमोहन जी का मंदिर अपनी भव्यता की कहानी कहते दिखाई देते हैं।
सन् 1737 तक वैर गढ़ पूरी तरह से निर्मित हो चुका था। दिल्ली, मथुरा, आगरा एवं जयपुर के अनेक कारीगरों, शिल्पकारों व अभियंताओं ने इसके निर्माण एवं नापजोख में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। वैर में बहुत बड़े भूभाग पर नौलखा बाग राजा प्रतापसिंह द्वारा सृजित किया जिसमें नौ लाख कदम्ब के वृक्ष रोपित किए गए। इसी वजह से इस बाग को नौलखा बाग के नाम से पुकारा जाने लगा। आज इस नौलखा बाग में बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय, पंचायत समिति कार्यालय, पुलिस थाना भवन, अस्पताल, डाक बंगला, तहसील कार्यालय भवन, उपखंड अधिकारी कार्यालय भवन, उप कोषागार कार्यालय, अधिकारीयों के निवास तथा हाल ही में न्यायालय भवन निर्माण के लिए न्यायविभाग को छह बीघा जमीन आवंटित हुई है जिसमें न्यायालय भवन का कार्य चल रहा है।
सीताराम जी मंन्दिर
राजा प्रतापसिंह ने कस्बे में अनेक मन्दिरों का भी निर्माण कार्य कराया। उनमें मदनमोहन जी का मन्दिर, लश्करी मन्दिर एवं सीताराम जी मंदिर , खपाटिया मंदिर आदि सहित अनेक भव्य मंदिरों का निर्माण कार्य कराया गया। फुलबाड़ी के उत्तर पूर्व की तरफ सीताराम जी मंदिर है। वैर राज दरबार के धर्मगुरु आचार्य श्रीनिवासाचार्य जो जयपुर में राजा सवाई जयसिंह के निमंत्रण पर अश्वमेघ यज्ञ के लिए दक्षिण भारत से जयपुर पधारे थे। वह एक बार राजा प्रतापसिंह के आग्रह पर वैर आए तो राजा ने उनसे गुरु दीक्षा ग्रहण की। तब उनके सम्मान में राजा प्रतापसिंह ने सीताराम जी मन्दिर का निर्माण कार्य कराकर उन्हें भेंट किया।
प्रताप गंगा नहर
राजा प्रतापसिंह ने अपने शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए किले को पूर्ण सुरक्षा देने की खातिर खसरा नम्बर 1312 रकवा 31 बीघा 12विश्वा भूभाग पर प्रताप गंगा नहर का निर्माण कार्य कराकर एक मिसाल कायम की। प्रताप गंगा नहर में पानी की आवक ग्राम सीता एवं ग्राम रायपुर की पहाड़ियों के बरसाती पानी से होती थी। प्रताप दुर्ग का निर्माण सैन्य एवं वास्तुकला विशेषज्ञों की सलाह मशविरा से कस्बा के बीचों – बीच कराया गया।
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