जज ने दे दिया था गलत फैसला, सुप्रीम कोर्ट ने उसकी बर्खास्तगी पर लगा दी मुहर

नई दिल्ली 

सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला एडिशनल सेशंस जज (ADJ) द्वारा प्रोबेशन (परिवीक्षा) के दौरान गलत न्यायिक आदेश पारित करने के लिए उसकी सेवा समाप्त करने को चुनौती देने वाली रिट याचिका को खारिज कर दिया और हाईकोर्ट द्वारा उसकी बर्खास्तगी के फैसले पर मुहर लगा दी।

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मामला मध्य प्रदेश की एडिशनल सेशंस जज (ADJ) लीना दीक्षित का है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने माना कि मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के पूर्ण पीठ द्वारा की गई सिफारिश पर न्यायाधीश की सेवाओं को समाप्त करने के मध्य प्रदेश सरकार के निर्णय में कुछ भी गलत नहीं था। लिहाजा पीठ ने पूर्व जज की रिट याचिका को खारिज कर दिया, जो व्यक्तिगत रूप से पेश हुई थीं।

हत्या के मामले में पांच साल की सुनाई थी सजा
याचिकाकर्ता महिला अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश को इस आधार पर परिवीक्षा के दौरान सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था कि उसके द्वारा हत्या (धारा-302) के एक मामले में दोषी को पांच साल कारावास की सजा सुनाई थी। जबकि हत्या में न्यूनतम सजा उम्रकैद है। बाद में उन्होंने हत्या के अपराध को ‘गैर इरादतन हत्या’ में बदल दिया था। इस अनियमितता का हवाला देते हुए पूर्ण पीठ ने उन्हें बर्खास्त करने की सिफारिश की, जिसे राज्य सरकार ने स्वीकार कर लिया।

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महिला जज ने यह कहा कर मांगी थी रियायत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हमारी तरफ से आपके लिए सहानुभूति है और हम आपको भविष्य के प्रयासों के लिए शुभकामनाएं देते हैं। याचिकाकर्ता जज का कहना था कि उन्हें नोटिस नहीं मिला था और एक गलती बर्खास्तगी का आधार नहीं हो सकता। उनका कहना था, वह मेरी पहली पोस्टिंग थी और पहला फैसला था। मैं अभी भी सीख रही हूं। यह केवल एक गलती थी और मुझे निकाल दिया गया था। मुझे खुद को साबित करने का मौका नहीं दिया गया।

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दहेज हत्या के मामले में दोषी को नाम मात्र की सजा देने के कारण प्रशासकीय समिति ने उन्हें पद से हटाने की सिफारिश की थी जिसे मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के फुल कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। लीना ने एमपी हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ ही सुप्रीम कोर्ट गई थीं, लेकिन उन्हें यहां से भी राहत नहीं मिली।

हत्या का दोषी ठहराया, लेकिन सजा बेहद कम दी
लीना दीक्षित के एडीजे कोर्ट में पति द्वारा पत्नी को जिंदा जलाने का मामला सामने आया था। पत्नि ने दम तोड़ने से पहले सारी घटना बता दी। घटना स्थल से केरोसिन तेल की मौजूदगी की भी पुष्टि हुई और तय हो गया कि पति ने ही पत्नी की निर्ममता से जान ली है। बतौर एडीजे लीना दीक्षित ने पति को दफा 302 के तहत हत्या का दोषी तो ठहराया, लेकिन उसे सिर्फ 5 वर्ष की जेल की सजा सुनाई। सजा में नरमी का मामला जोर पकड़ा तो लीना ने खुद ही अपने जजमेंट की समीक्षा की और दफा 302 के बदले दफा 304ए के तहत दोषी बता दिया जिसमें ज्यादा से ज्यादा दो वर्षों की सजा होती है। जबकि दहेज हत्या का मामला दफा 304बी के तहत आता है और इसमें कम-से-कम सात साल की सजा का प्रावधान है जो अधिकतम उम्रकैद तक बढ़ाई जा सकती है।

समिति ने लिया ऐक्शन
प्रशासकीय समिति ने जज के इस व्यवहार को पद की गरिमा के खिलाफ माना और उन्हें हटाने की सिफारिश की। समिति ने अपनी सिफारिश में कहा कि लीना दीक्षित ने ऐसी गलती की है जिसका बचाव नहीं किया जा सकता है। ऊपर से अनधिकृत तरीके से 302 की दफा बदलकर 304ए कर देना, नीम पर करेला चढ़ने जैसा है। ऐसे में यह स्पष्ट है कि लीना दीक्षित जज के गरिमामय पद के काबिल नहीं है।

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