ईर्ष्या, क्रोध, घृणा, प्रतिशोध, अहं को त्यागिए और प्रसन्न रहिए

अंतरराष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस

डॉ. अलका अग्रवाल 


भारत में हमेशा से भौतिक विकास की तुलना में खुशी को महत्व दिया गया। यही कारण है, जहां तक मुझे याद है, बड़ों के चरण स्पर्श करने पर यही आशीर्वाद दिया जाता था कि सदा प्रसन्न रहो। पर पता नहीं कब यह प्रसन्नता भारतीय जनता के हाथ से फिसल गई। विश्व के 156 देशों की सूची में प्रसन्नता इंडेक्स में 20 मार्च, 2019 को भारत 144 में नंबर पर था और फिनलैंड नंबर एक पर। इससे पता चलता है कि भारत में प्रसन्नता कितनी नीचे पहुंच गई है और इस पर ध्यान दिया जाना वाकई कितना जरूरी है। 20 मार्च, 2013 से संयुक्त राष्ट्र संघ ने भूटान की पहल पर, अंतरराष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस मनाना आरंभ किया।अब तक भौतिक विकास ही प्रसन्नता का मानदंड माना जाता था। इसके लिए सकल घरेलू उत्पाद महत्वपूर्ण होता था। परन्तु अब भौतिक विकास पर, सकल घरेलू आनन्द को महत्व प्रदान किया गया और इसीलिए विकास के साथ-साथ प्रसन्नता भी एक महत्वपूर्ण संकेतक बन गई।

एक बहुत बड़ा भ्रम है कि बड़ा मकान, बड़ी गाड़ी, आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स, बड़ी नौकरी, इन सब से प्रसन्नता जुड़ी हुई है और इसीलिए व्यक्ति जीवन भर इनके पीछे दौड़ता रहता है। परन्तु अंत में कुछ भी हाथ नहीं आता। यह समझना जरूरी है की प्रसन्नता का संबंध इन संसाधनों से है ही नहीं। ये केवल हमें सुविधा और आराम प्रदान कर सकते हैं, प्रसन्नता बाहर से प्राप्त की ही नहीं जा सकती। इसलिए उसे बाहर ढूंढ़ना व्यर्थ है। यह हमारे मन की अवस्था है और हमने भौतिकवादी और उपभोक्तावादी अंधी दौड़ में अपनी जड़ों से जुड़े दर्शन को भुला दिया। हमें अपने अंदर झांक कर देखना होगा कि आखिर हमारी प्रसन्नता को किसने चुराया है या प्रसन्ता पर दुख की छाया कैसे पड़ी ? भारत जैसे देश में जहां अध्यात्म शिखर पर रहा है, जो इस क्षेत्र में विश्व का मार्गदर्शन करता रहा है,वहां  प्रसन्नता का लोप होना सचमुच विचारणीय है। ईर्ष्या, क्रोध, घृणा, प्रतिशोध,अहं ये सभी भाव मनुष्य को प्रसन्न नहीं रहने देते। चिंता और तनाव निरन्तर बढ़ते जा रहे हैं और साथ ही बढ़ता जा रहा है अवसाद, इनके होते हुए प्रसन्नता का तो प्रश्न ही नहीं उठता।

हमारे यहां हमेशा से काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह और मत्सर को मनुष्य का और प्रसन्नता का शत्रु माना गया है। प्रसन्नता एक दिव्य भाव है, यही कारण है कि राम, सीता, कृष्ण, राधा सबके मुख पर प्रसन्नता और अधरों पर मुस्कान दिखाई देती है। तब हम कौन सी राह पर जा रहे हैं। कैसे ग्रहण लग गया मानव मात्र की प्रसन्नता पर और हम कैसे इसे वापिस ला सकते हैं, शायद यही रेखांकित करने के लिए UNO ने ‘अंतरराष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस’ मनाना शुरू किया। प्रसन्नता को मापने के लिए–प्रति व्यक्ति आय, जीडीपी, स्वास्थ्य, सामाजिक सहयोग, आपसी विश्वास, जीवन सम्बन्धी निर्णय लेने की स्वतंत्रता को आधार बनाया जाता है। भारत आज अपने पड़ोसियों से भी इस क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है–एक ऐसा विश्वव्यापी आंदोलन आरम्भ करना, जो प्रसन्नता को मौलिक मानव अधिकार बनाए जाने हेतु जागरूकता पैदा करे और इसके साथ ही संतुष्टि और प्रसन्नता के स्तर को ध्यान में रखते हुए लोक- नीतियों के निर्माण हेतु सरकारों को भी प्रेरित करे। आज नहीं,अभी से, इसी पल से निश्चय करें–- प्रसन्न रहने का और अपने देश में प्रसन्नता का प्रसार करने का।अगर हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा यह संकल्प,अपने लिए और देश के लिए।

(लेखक सेवानिवृत्त कालेज प्राचार्य हैं)

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