देश में इस घटना की जांच की मांग होने लगी, इसलिए हंटर समिति नियुक्त की गई। भारतीय अब समझ गए थे कि यह हत्याकांड पूर्व नियोजित था। पंजाब के सभी सैनिक औऱ असैनिक अधिकारी इसमें भागीदार थे। इस हत्याकांड के दूरगामी परिणाम हुए। हंटर कमीशन ने तो केवल डायर का डिमोशन करके, वापिस ब्रिटेन भेज दिया था, लेकिन युवा ऊधमसिंह यह सहन नहीं कर सके कि डायर जैसा हत्यारा जीवित रहे। उन्होंने 1940 में ब्रिटेन जाकर डायर की हत्या कर दी औऱ कुछ माह बाद ही हंसते- हंसते फांसी पर चढ़ गए। भगतसिंह भी इस घटना से बेहद प्रभावित हुए। महात्मा गांधी, जो ब्रिटिश न्यायप्रियता में विश्वास रखते थे,अब तक प्रथम महायुद्ध के दौरान सरकार के सहयोगी बने हुए थे। उनका सरकार से मोहभंग हुआ और वे इसके बाद असहयोगी बन गए। इस प्रकार जलियांवाला बाग में किसी की भी शहादत व्यर्थ नहीं गई, इसने देश में सरकार के खिलाफ एकता को तो बढाया ही, असहयोग आंदोलन के लिए जमीन भी तैयार की।
(लेखक सेवानिवृत्त कालेज प्राचार्य हैं)