U-Turn: सरकारी बैंकों के निजीकरण पर RBI की आई सफाई, बोली- ये लेखक के निजी विचार

नई दिल्ली 

सरकारी बैंकों के निजीकरण मामले में प्रकाशित एक लेख को लेकर मचे बवाल के बीच RBI  की ओर से शुक्रवार को एक प्रेस रिलीज जारी कर सफाई दी गई है। अब  RBI  ने इस पूरे प्रकरण को लेकर स्पष्ट किया है कि लेख में निजीकरण का विरोध नहीं किया गया है बल्कि कहा गया है कि एक साथ बड़े पैमाने पर बैंकों के निजीकरण के बजाए क्रमबद्ध तरीका फायदेमंद होगा।

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RBI  ने कहा-यह मीडिया के कुछ वर्गों में रिपोर्ट के संबंध में है जिसमें कहा जा रहा है कि आरबीआई सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSB) के निजीकरण के खिलाफ है। आरबीआई के मुताबिक लेख में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यह भारतीय रिजर्व बैंक के नहीं बल्कि लेखक के निजी विचार हैं।

RBI के मुताबिक लेख के अंतिम पैराग्राफ में अन्य बातों के साथ-साथ उल्लेख किया गया है कि पारंपरिक दृष्टि से सभी दिक्कतों के लिए निजीकरण प्रमुख समाधान है जबकि आर्थिक सोच ने पाया है कि इसे आगे बढ़ाने के लिए सतर्क दृष्टिकोण की आवश्यकता है। लेख में कहा गया है कि सरकार की तरफ से निजीकरण की ओर धीरे-धीरे बढ़ने से यह सुनिश्चित हो सकता है कि शून्य की स्थिति नहीं बने।

देश के केंद्रीय बैंक ने अपनी ओर से सफाई जारी करते हुए कहा है कि उसके बुलेटिन में बैंकों के निजीकरण पर जो बात कही गई है वह लेखक के निजी विचार हैं। रिजर्व बैंक इससे  सहमत नहीं है। यह आरबीआई के नजरिए को व्यक्त नहीं करता है।

आपको बता दें कि आरबीआई की ओर से हाल ही में जारी बुलेटिन में कहा गया था कि देश में बैंकों का निजीकरण सोच-समझ कर होना चाहिए। इसमें कहा गया है कि बैंकों का तेजी से निजीकरण करना सही नहीं होगा। बुलेटिन में कहा गया था कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक फाइनेंशियल इनक्लूजन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इनका निजीकरण सोच-समझकर किया जाना चाहिए। निजी बैंकों का मुख्य उद्देश्य मुनाफा बढ़ाना है, जबकि सरकारी बैंकोंं का उद्देश्य समाजिक लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करना है।

अब आरबीआई ने इस मामले में अपनी तरफ से स्पष्टीकरण जारी करते हुए कहा है कि प्रकाशित रिपोर्ट को आरबीआई के रिसर्चरों ने तैयार किया है। इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं। यह आरबीआई के नजरिए को व्यक्त नहीं करता है। आरबीआई इससे सहमत नहीं है।

बता दें कि सरकार ने 2020 में 10 राष्ट्रीयकृत बैंकों का चार बड़े बैंकों में विलय कर दिया था। इससे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या घटकर 12 रह गई है, जो 2017 में 27 थी।

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