सकल जगत का हरने को तम…

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 

डॉ.विनीता  राठौड़


असाधारण था जिनका जीवन
जन्म से पूर्व जिनके वध की बनी योजना
घनघोर घटा युक्त मेघों द्वारा हुई महा गर्जना
टूटा कारागार की जंजीरों  का हर एक बन्धन
भादों की अंधियारी अष्टमी को लिया अवतरण
सकल जगत का हरने  को तम
सोलह कलाओं से परिपूर्ण वे परम ब्रह्म

मोहक, रूपवान,  प्रेमी, योद्धा सर्वगुण संपन्न
करते थे उन्मुक्त प्रेम तथा कुशल युद्ध  संचालन
गोकुल में  करते थे माखन चोरी
गोपियों संग रास रचा खेलते होली
सब के मन को मोहने वाले  मनमोहना
मुरलीधर से सुदर्शन चक्रधारी बन जाना

छद्म प्रहार व युद्ध को छोड़ कर आना
रणछोड़ बन नई युद्ध नीति सिखाना
एक कदम आगे, दो कदम पीछे  हटाना
कूटनीतिक राजनीति  का पाठ पढ़ाना
पुस्तकीय धर्म से परे लेकर जाना
यथार्थ युगधर्म का बोध कराना

शाश्वत जीवात्मा व परमात्मा से अवगत कर
निष्काम कर्म योग का किया प्रतिपादन
युद्ध भूमि में कर्तव्य निष्ठा के उपदेश द्वारा
श्रीमदभगवदगीता की कर दी उद्घोषणा
हरे  कृष्णा, हरे  कृष्णा, हरे  कृष्णा!

(लेखिका राजकीय महाविद्यालय, नाथद्वारा, राजसमन्द में प्राणीशास्त्र की सह आचार्य हैं)

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