मां दुर्गा की शक्ति और भगवान शंकर की भक्ति का नौ दिवसीय पर्व नवरात्र

नवरात्रि विशेष 

 गोपाल गुप्ता, ज्योतिषाचार्य, जयपुर  


नवरात्रि, शक्ति और भक्ति  का पर्व है। इस पर्व को भगवान शंकर की भक्ति और मां  दुर्गा  शक्ति की पूजा के लिए विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है। नवरात्रि पर्व साल में दो बार आता है, चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक चैत्र नवरात्र। आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी तक शारदीय नवरात्र। नवरात्र के दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा अर्चना की जाती है।शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा,  स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और सिद्धिदात्री। नवरात्रि के दौरान देवी के शक्तिपीठों और सिद्धपीठों पर भक्तों की विशेष आवक रहती है। इन स्थानों पर मेले भी लगते हैं।

नवरात्रि के प्रथम दिवस प्रातः कलश स्थापित करके सम्पूर्ण नौ दिवस तक शक्ति पाठ किया जाता है। इन नौ दिवसों के अन्तर्गत भक्त उपवास (व्रत) रखते हैं। इन नौ दिवसों के नौ व्रत (संकल्प) धारण कर हम अपने जीवन को साकार रुप भी दे सकते हैं। नवरात्रि के दौरान गायत्री साधना की जाती है। नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा से जीवन में भय, विघ्न और शत्रुओं का नाश होता है। साथ ही नवरात्र साधना का मुख्य उद्देश्य हमारे अंदर की पशुता रूपी विकारों को बिंदुरूप कर विराट देवत्व की प्रतिस्थापना करना भी है। भारतीय गृहस्थ जीवन में शक्तिपूजन, व्यक्तित्व संवर्धन एवं आध्यात्मिक चेतना जाग्रत करने का यह एक विराट संकल्प है। मां दुर्गा के पूजन से हमारे समाज में स्त्रियों को माता, देवी स्वरूप पूज्य स्थान प्राप्त होता है।

शारदीय नवरात्रि का महत्व
देवी दुर्गा ने आश्विन के महीने में महिषासुर पर आक्रमण कर उससे नौ दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया। इसलिए इन नौ दिनों को शक्ति की आराधना के लिए समर्पित किया गया है। चूंकि आश्विन मास में शरद ऋतु का प्रारंभ हो जाता है, इसलिए इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। एक धारणा के अनुसार नवरात्र के नौ दिवसों को मूल गुणों के आधार पर तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। प्रथम तीन दिवस दुर्गा को समर्पित माने जाते हैं, अगले तीन दिवस लक्ष्मी को और आखिरी तीन दिवस मां सरस्वती को समर्पित माने गए हैं। दसवां दिन इन तीनों महाशक्तियों की विजय के लिऐ  विजयदशमी के रुप में मनाया जाता है।

प्रथम दिवस मां शैलपुत्री की पूजा
मां शैलपुत्री, मां दुर्गा का प्रथम स्वरूप हैं। मां शैलपुत्री दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प लिऐ होती है। शास्त्रों के अनुसार मां शैलपुत्री चंद्रमा की द्योतक हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती, पर्वत राज हिमालय की पुत्री हैं।  शैल का अर्थ है हिमालय और पर्वत राज हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। पार्वती के रूप में इनको भगवान शिव की पत्नी के रूप में भी जाना जाता है। मां शैलपुत्री स्वरूप की पूजा देवी के मंडपों में प्रथम नवरात्र के दिन की जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार माता रानी के शैलपुत्री स्वरूप की उपासना से चंद्रमा के बुरे प्रभाव निष्क्रिय हो जाते हैं। इनकी पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है।

पूजन विधि
प्रातः काल उठकर स्नान कर स्वक्छ वस्त्र धारण करें। तत्पश्चात चौकी पर लाल या सफ़ेद रंग का कपड़ा बिछाकर मां शैलपुत्री की छवि स्थापित करें, कलश स्थापित कर मां शैलपुत्री का स्मरण कर मां शैलपुत्री को कुमकुम और अक्षत का तिलक लगाएं, सफ़ेद, पीले, या लाल रंग के पुष्प अर्पित करें, धूप- दीप प्रज्ज्वलित कर मां शैलपुत्री की आरती गान करें। मां शैलपुत्री की कथा, दुर्गा चालिसा, दुर्गा स्तुति, या दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। भोग लगाकर पूजा को संपन्न कर मां से क्षमा याचना करें है- मां हमने पूर्ण श्रद्धा भाव से आपकी अर्चना की है। अगर जाने अंजाने में हमसे कोई त्रुटि रही हो तो हमें क्षमा कर हमारी अर्चना स्वीकार करें। इस धरा पर सभी जीवों का कल्याण करें। संध्या के समय भी माता की आरती करें और मंत्र जप एवं ध्यान करें।

मां शैलपुत्री को गाय के घी से पके पकवान बेहद प्रिय हैं। गौ दुग्ध से बनी बर्फ़ी, खीर, या कद्दू के हलवे का भोग अर्पित करना श्रेष्ठ  है। मां शैलपुत्री की पूजा के प्रमुख मंत्र: 

ॐ देवी शैलपुत्र्ये नमः
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नमः
ॐ शं शैलपुत्री देव्यै: नमः
या देवी सर्वभूतेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

मां शैलपुत्री की पूजा का विधान
षोड्शोपचार विधान से की जाती है। पूजा में समस्त नदियों और दिशाओं का आह्वान किया जाता है। मां शैलपुत्री को सफ़ेद चीज़ें बहुत पसंद हैं, इसलिए, मां को सफ़ेद फूलों से सजाया जाता है और सफ़ेद वस्त्र और श्वेत गौ दुग्ध निर्मित मिष्ठानों का भोग लगाया जाता है। पूजा के बाद मां शैलपुत्री की आरती उतारनी चाहिए। पूजा के बाद मां शैलपुत्री की कथा, दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालिसा, या दुर्गा स्तुति का पाठ करना चाहिए। पूजा के बाद मां शैलपुत्री के जयकारे लगाने चाहिए। शाम के समय में भी मां शैलपुत्री की आरती करनी चाहिए और मंत्र जप और ध्यान करना चाहिए।

नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र है:
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः
दधाना कर पद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:’
इस मंत्र का कम से कम एक माला यानी 108 बार जाप करना उत्तम रहता है।

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का विधान
मां ब्रह्मचारिणी की पसंद प्रिय वस्तुएं पूजा अर्चना के लिए: गुड़हल और कमल का फूल, चीनी, मिश्री, पंचामृत, दुग्ध, और दुग्ध से बने व्यंजन। मां ब्रह्मचारिणी  लंबी आयु और सौभाग्य का कारक हैं। “जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता, जय चतुरानन प्रिय सुख दाता” की विधि विधान से पूजा अर्चना करने के उपरान्त मां ब्रह्मचारिणी की आरती गायन करके मां से क्षमा याचना करें। हे! मां हमने पूर्ण श्रद्धा भाव से आपकी अर्चना की है। अगर जाने अंजाने में हमसे कोई त्रुटि रही हो तो हमें क्षमा कर हमारी अर्चना स्वीकार करें। इस धरा पर सभी जीवों का कल्याण करें। संध्या के समय भी माता की आरती करें और मंत्र जप एवं ध्यान करें।

नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा
पूजा अर्चना हेतु मंत्र:
ॐ देवी चंद्रघंटाय नमः।।
पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता।।
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्।।
या देवी सर्वभू‍तेषु मां चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

मां चंद्रघंटा की पूजा का विधान
प्रातः काल उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजास्थल पर चौकी लगाकर माता चंद्रघंटा की छवि स्थापित करें। मां को सिंदूर, अक्षत, गंध, धूप, पुष्प आदि अर्पित करें। लाल रंग के गुलाब और गुड़हल के पुष्प अर्पित करें। मां को दुग्ध निर्मित मिष्ठान और  खीर का भोग अर्पित करें। पूजा के दौरान दुर्गा चालीसा का पाठ और दुर्गा आरती का गान करें। मां से क्षमा याचना करें- हे मां!  हमने पूर्ण श्रद्धा भाव से आपकी अर्चना की है। अगर जाने अंजाने में हमसे कोई त्रुटि रही हो तो हमें क्षमा कर हमारी अर्चना स्वीकार करें। इस धरा पर सभी जीवों का कल्याण करें। संध्या के समय भी माता की आरती करें और मंत्र जप एवं ध्यान करें।

नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा
मां कूष्मांडा की पूजा अर्चना हेतु प्रमुख मंत्र:
ॐ देवी कुशमंडायै नमः।।
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दारिद्रादि विनाशिनीम्।
जयंदा धनदां कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
इन मंत्रों का 108 बार जाप करने से जीवन की परेशानियां दूर होती हैं।

या देवी सर्वभूतेषु कूष्मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
इस मंत्र का 5 बार जाप करने से बौद्धिक क्षमता में बढ़ोतरी होती है। और परीक्षा इत्यादि में बेहतर नतीजे प्राप्त होते हैं।

जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्मांडे प्रणमाम्यहम्॥
इस मंत्र का 11 बार जाप करने से इच्छित फल प्राप्त होते हैं।

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
इस मंत्र का 21 बार जाप करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।

मां कूष्मांडा की पूजा का विधान
पूजा में पीले कपड़े, फूल, फल, मिष्ठान, धूप, दीप, नैवेद्य, अक्षत आदि अर्पित करें। मां को माल पुए, दही और हलवे का भोग अर्पित करें। मां को कुम्हरा यानी पेठा बहुत प्रिय है, इसलिए इनकी पूजा में पेठे का भोग अर्पित करना उत्तम रहता है।

मां से क्षमा याचना करें- हे मां! हमने पूर्ण श्रद्धा भाव से आपकी अर्चना की है। अगर जाने अंजाने में हमसे कोई त्रुटि रही हो तो हमें क्षमा कर हमारी अर्चना स्वीकार करें। इस धरा पर सभी जीवों का कल्याण करें। संध्या के समय भी माता की आरती करें और मंत्र जप एवं ध्यान करें।

नवरात्रि के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा
मां स्कंदमाता की पूजा के मुख्य मंत्र:
ॐ देवी स्कंदमातायै नमः।।
या देवी सर्वभू‍तेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
ॐ स्कन्दमात्रै नम:
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
 
मां स्कंदमाता की पूजा का विधान
प्रातः काल उठकर स्नान करें। पूजा के लिए एक उपर्युक्त स्थान पर लकड़ी की चौकी पर पीला या लाल वस्त्र का आसन रखकर चौकी पर मां स्कंदमाता की छवि स्थापित करें। पीले फूलों से मां का श्रृंगार करें। पूजा में फल, फूल, मिठाई, लौंग, इलायची, अक्षत, धूप, दीप, और केले का फल अर्पित करें। कपूर और गौ घृत से मां की आरती करें। मां से क्षमा याचना करें- हे मां! हमने पूर्ण श्रद्धा भाव से आपकी अर्चना की है। अगर जाने अंजाने में हमसे कोई त्रुटि रही हो तो हमें क्षमा कर हमारी अर्चना स्वीकार करें। इस धरा पर सभी जीवों का कल्याण करें। संध्या के समय भी माता की आरती करें और मंत्र जप एवं ध्यान करें।

नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा
मां कात्यायनी की पूजा अर्चना के प्रमुख मंत्र:
ॐ देवी कात्यायन्यै नमः।।
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी
कात्यायनी महामाये , महायोगिन्यधीश्वरी।
नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरुते नमः
या देवी सर्वभू‍तेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मां कात्यायनी की पूजा का विधान
प्रातः काल उठकर स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मां कात्यायनी की पूजा में पीले और सफ़ेद रंग का महत्व है इसलिए वस्त्र अगर इन्ही रंगों के हों तो उत्तम रहता है। मां कात्यायनी को शहद का भोग अर्पित करना है। मां कात्यायनी को लाल रंग के गुड़हल या गुलाब के फूल अर्पित करना चाहिए। मां कात्यायनी को पीले वस्त्र पहनाए जाते हैं। मां कात्यायनी की पूजा में घी या कपूर का दीप प्रज्वलित किया जाता है। मां कात्यायनी को पांच तरह के फल और मिठाई का भोग अर्पित किया जाता है। मां कात्यायनी की पूजा में रोली, कुमकुम, अक्षत अर्पित किए जाते हैं। मां कात्यायनी की पूजा में पान में 2 लौंग, बताशा, एक छोटी इलायची रखकर अर्पित करना श्रेष्ठ रहता है। साथ में कोई मुद्रा भी अर्पित की जाए तो श्रेष्ठ रहता है ।

मां से क्षमा याचना करें- हे मां! हमने पूर्ण श्रद्धा भाव से आपकी अर्चना की है। अगर जाने अंजाने में हमसे कोई त्रुटि रही हो तो हमें क्षमा कर हमारी अर्चना स्वीकार करें। इस धरा पर सभी जीवों का कल्याण करें। संध्या के समय भी माता की आरती करें और मंत्र जप एवं ध्यान करें।

नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा
मां कालरात्रि की पूजा के मुख्य मंत्र प्रमुख मंत्र:
ॐ देवी कालरात्र्यै नम:।।
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
ॐ ऐ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:
ॐ फट् शत्रून साघय घातय ॐ।
ॐ क्लीं ऐं श्रीं कालिकायै नमःॐ।
ॐ फट् शत्रून साघय घातय ॐ।
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

मां कालरात्रि को नवदुर्गा की सातवीं शक्ति माना जाता है। मां कालरात्रि का रंग काला है और ये त्रिनेत्रधारी हैं। इनके गले में विद्युत् की माला और हाथों में खड्ग और कांटा है। इनका वाहन गधा है। माना जाता है कि मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करती हैं। 

मां कालरात्रि की पूजा का विधान
प्रातः काल उठकर स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर, मां की छवि को एक लकड़ी के पाटे पर लाल वस्त्र के ऊपर स्थापित करें। शुद्ध गंगाजल से स्नान करवा कर मां को लाल वस्त्र धारण कराएं। मां को रोली – कुमकुम का टीका लगाऐं। पांच मेवे और फल अर्पित कर मां कालरात्रि को  प्रिय गुड़ का भोग अर्पित करें। मां को रातरानी का  बेहद पसंद पुष्प भी अर्पित करें। मां से क्षमा याचना करें-हे मां! हमने पूर्ण श्रद्धा भाव से आपकी अर्चना की है। अगर जाने अंजाने में हमसे कोई त्रुटि रही हो तो हमें क्षमा कर हमारी अर्चना स्वीकार करें। इस धरा पर सभी जीवों का कल्याण करें। संध्या के समय भी माता की आरती करें और मंत्र जप एवं ध्यान करें।

नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा
मां महागौरी के लिए प्रमुख मंत्र:
ॐ देवी महागौर्यै नमः॥
श्वेते वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥
वन्दे वांछित कामार्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढाचतुर्भुजामहागौरीयशस्वीनीम्॥
ओम देवी महागौर्यै नम: या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

मां महागौरी की पूजा का विधान
पूजा के लिए प्रातः काल उठकर स्नान करें और साफ़ और सफ़ेद रंग के वस्त्र पहनें। पूजा स्थल पर गंगाजल का प्रक्चालन कर शुद्धि करें। मां महागौरी की छवि को लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र पर स्थपित करें। मां को लाल चुनरी, सिंदूर, चावल, और सफ़ेद फूल अर्पित करें। मां को अक्षत, लाल पुष्प, और पंचामृत भी अर्पित करें। मां को भोग के रूप में फल, मिठाई, नारियल की बर्फ़ी, और लड्डू का भोग अर्पित करें। मां के सामने शुद्ध घृत का दीपक प्रज्वलित करें।  मां को लाल रंग बहुत प्रिय है। पूजा कक्ष के दरवाज़े पर हल्दी, सिंदूर या रोली से स्वास्तिक बनाएं। मां से क्षमा याचना करें- हे मां! हमने पूर्ण श्रद्धा भाव से आपकी अर्चना की है। अगर जाने अंजाने में हमसे कोई त्रुटि रही हो तो हमें क्षमा कर हमारी अर्चना स्वीकार करें। इस धरा पर सभी जीवों का कल्याण करें। संध्या के समय भी माता की आरती करें और मंत्र जप एवं ध्यान करें।

नवरात्रि के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा
मां सिद्धिदात्री के  प्रमुख मंत्र:
ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः।।
ॐ ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम: ॐ।
सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

मां सिद्धिदात्री की पूजा का विधान
प्रातः काल उठकर स्नान आदि करके स्वक्छ वस्त्र धारण करें। पूजा के लिऐ चौकी पर मां सिद्धिदात्री की छवि स्थापित करें। मां को गंगा जल से अभिषेक करें। मां को लाल चुनरी, अक्षत्, फूल, माला, सिंदूर, फल, नारियल, चना, खीर, हलवा, पूड़ी आदि अर्पित करें। मां को तिल का भोग लगाएं और कमल का फूल अर्पित करें। मां को सफ़ेद रंग के वस्त्र अर्पित करें। हवन एवं आरती करें। उसके उपरांत कन्या पूजन करें एवं कन्याओं को भोजन कराएं दक्षिणा दें। वंचितों को भी भोजन कराएं, सामर्थानुसार सहायता करें। मां से क्षमा याचना करें- हे मां! हमने पूर्ण श्रद्धा भाव से आपकी अर्चना की है। अगर जाने अंजाने में हमसे कोई त्रुटि रही हो तो हमें क्षमा कर हमारी अर्चना स्वीकार करें। इस धरा पर सभी जीवों का कल्याण करें। संध्या के समय भी माता की आरती करें और मंत्र जप एवं ध्यान करें।

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