कार्तिक मास की चतुर्थी पर करवा चौथ मनाती सुहागन हर स्वर्णाभूषणों से हो सुसज्जित दमकते आनन से परिपूरित करके सकल सोलह श्रृंगार व्रत अनुष्ठान करती अंगीकार
अपने पिया के प्यार में गुजर जाती हर हालात से क्या भूख और प्यास से रखती व्रत तन्मयता से जन्म जन्मांतर के साथ का बनाती चांद गवाह इस बात का
पलक पांवड़े बिछा बिछा कर प्रियतम का करती सत्कार अखण्ड सौभाग्यवती होने की सद्आकांक्षा करती बारम्बार सुहाग मेरा रहे अमर चौथ माता से मांगे ये वर।
(लेखिका राजकीय महाविद्यालय, नाथद्वारा, राजसमन्द की प्राणीशास्त्र की सेवानिवृत्तसह आचार्य हैं) —————-