अयोध्या
अयोध्या में रामा मंदिर के निर्माण के क्रम में एक और अध्याय जुड़ने जा रहा है। भगवान राम के मन्दिर में रामलला के जिस बाल स्वरूप की मूर्ति जिस पत्थर से बनाई जाएगी, वह साढ़े 6 करोड़ साल पुराने पत्थर से बनेगी और यह काली गण्डकी नदी से निकाल कर भारत लाया जा रहा है। इस पत्थर का नेपाल और मिथिला से खास रिश्ता जुड़ा हुआ है।
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जिस काली गण्डकी नदी के किनारे से यह पत्थर लिया गया है, वह नेपाल की पवित्र नदी मानी जाती है जो दामोदर कुण्ड से निकल कर भारत में गंगा नदी में मिलती है। इस नदी किनारे शालिग्राम के पत्थर पाए जाते हैं, जिनकी आयु करोड़ों वर्ष की होती है जो सिर्फ यहीं पाई जाती है। भगवान विष्णु के रूप में शालिग्राम पत्थरों की पूजा की जाती है, जिस कारण से इसे देवशिला भी कहा जाता है। अयोध्या में भगवान राम के मन्दिर में रामलला के बाल स्वरूप की मूर्ति नेपाल (Nepal) और मिथिला (Mithila) में पाए जाने वाले इसी शालिग्राम पत्थर (Shaligram stone) से बनेगी। यह कोई आम पत्थर नहीं है बल्कि उसका ऐतिहासिक, पौराणिक, धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व है। भारत की गंगा नदी (Ganga river) में विलीन होने वाली नेपाल की पवित्र नदी ‘गण्डकी’ के किनारे पर पाए जाने वाले ये पत्थर अपने आप में ही एक खास महत्व रखते हैं।
पवित्र पत्थर लाने पहले पहले शास्त्र सम्मत क्षमापूजा
नेपाल के म्याग्दी जिला के बेनी से पूरे विधि विधान और हजारों लोगों की श्रद्धा के बीच इस पवित्र पत्थर को अब अयोध्या ले जाया जा रहा है। म्याग्दी में पहले शास्त्र सम्मत क्षमापूजा की गई, फिर जियोलॉजिकल और आर्किलॉजिकल विशेषज्ञों की देखरेख में पत्थर की खुदाई की गई। अब उसे बड़े ट्रक में लादकर पूरे राजकीय सम्मान के साथ ले जाया जा रहा है, जहां-जहां से यह शिला यात्रा गुजर रही है, पूरे रास्ते भर भक्तजन और श्रद्धालुओं के द्वारा इसका दर्शन और पूजा किया जा रहा है। एक पत्थर का वजन 27 टन बताया गया है, जबकि दूसरे पत्थर का वजन 14 टन है।
नेपाल ने रखा था इसका प्रस्ताव
करीब सात महीने पहले नेपाल के पूर्व उपप्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री बिमलेन्द्र निधि ने राम मन्दिर निर्माण ट्रस्ट के समक्ष यह प्रस्ताव रखा था। उसी समय से इसकी तैयारी शुरू कर दी गई थी। सांसद निधि ने ट्रस्ट के सामने यह प्रस्ताव रखा कि अयोध्याधाम में जब भगवान श्रीराम का इतना भव्य मन्दिर का निर्माण हो ही रहा है तो जनकपुर की तरफ से और नेपाल के तरफ से इसमें कुछ ना कुछ योगदान होना ही चाहिए। मिथिला में बेटियों की शादी में ही कुछ देने की परम्परा नहीं है, बल्कि शादी के बाद भी अगर बेटी के घर में कोई शुभ कार्य हो रहा हो या कोई पर्व त्यौहार हो रहा हो तो आज भी मायके से हर पर्व त्यौहार और शुभ कार्य में कुछ ना कुछ संदेश किसी ना किसी रूप में दिया जाता है। इसी परम्परा के तहत बिमलेन्द्र निधि ने भारत सरकार के समक्ष भी यह इच्छा जताई और अयोध्या में बनने वाले राममंदिर में जनकपुर का और नेपाल का कोई अंश रहे इसके लिए प्रयास किया।
भारत सरकार और राममंदिर ट्रस्ट की तरफ से हरी झण्डी मिलते ही हिन्दू स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद नेपाल के साथ समन्वय करते हुए यह तय किया गया कि चूंकि अयोध्या का मंदिर दो हजार वर्षों के लिए किया जा रहा है तो इसमें लगने वाली मूर्ति उससे अधिक चले उस तरह का पत्थर, जिसका धार्मिक, पौराणिक, आध्यात्मिक महत्व हो… उसको अयोध्या भेजा जाए।
एक लाख वर्ष है इस पवित्र पत्थर की आयु
नेपाल सरकार ने कैबिनेट बैठक से काली गण्डकी नदी के किनारे रहे शालीग्राम के पत्थर को भेजने के लिए अपनी स्वीकृति दे दी। इस तरह के पत्थर को ढूंढने के लिए नेपाल सरकार ने जियोलॉजिकल और आर्किलॉजिकल सहित वाटर कल्चर को जानने समझने वाले विशेषज्ञों की एक टीम भेजकर पत्थर का चयन किया। अयोध्या के लिए जिस पत्थर को भेजा जा रहा है, वह साढ़े 6 करोड़ वर्ष पुराना है और इसकी आयु अभी भी एक लाख वर्ष तक रहने की बात बताई गई है।
जिस काली गण्डकी नदी के किनारे से यह पत्थर लिया गया है, वह नेपाल की पवित्र नदी है जो दामोदर कुण्ड से निकल कर भारत में गंगा नदी में मिलती है. इस नदी किनारे रहे शालिग्राम के पत्थर पाए जाते हैं, जिनकी आयु करोड़ों वर्ष की होती है जो सिर्फ यहीं पाई जाती है। भगवान विष्णु के रूप में शालिग्राम पत्थरों की पूजा की जाती है ,जिस कारण से इसे देवशिला भी कहा जाता है।
पोखरा में गण्डकी प्रदेश सरकार के तरफ से मुख्यमंत्री खगराज अधिकारी ने इसे जनकपुरधाम के जानकी मंदिर के महन्थ को विधिपूर्वक हस्तांतरित किया है। हस्तांतरण करने से पहले मुख्यमंत्री और प्रदेश के अन्य मंत्रियों ने इस शालिग्राम पत्थर का जलाभिषेक किया। नेपाल के तरफ से अयोध्या के राम मंदिर को यह पत्थर समर्पित किए जाने पर सभी काफी उत्साहित दिखे।
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